पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/७५

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टाकुर ठसक सोभामई शीलमई रीतिमई प्रीतिमई, नीति के प्रमानन प्रसिद्ध दरसत है। ठाकुर कहत धन्य तुलसी तिहारी बानी अकह कहानी रससाना सरसत है। चंद सी चमेली सी गिरासीगंगधार कैसी मघा मेघमई राम जस बरसतहै ॥१८॥ (सवैया) रेसम को गुन छीन छला कर ऐचि के तोर सनेह रचावै। देह दसौ अंगुरी कर पाँइ बरै सुरझाइ के रंग मचावै। दोहत सी मन पोहत सी तन छोहत सी छवि भौह चलावै। चंचल नैनन सैनन सों पटवा की बहू बटवा से नचावै। लहरें उठे अंग उमंगन की मद जोबन के बहराती फिरै बड़री अँखियान चितै तिरछी चित लोगन के लहराती फिरै॥ कह ठाकुर है तन ओप खरी छिनहू न थिरै थहराती फिरै। सिर ओढ़े उढोनी कसे छतिया फरिया पहिरे फहराती फिरै। देखे अकेले किते दिन ह गये चाह गई चित सो कढ़ि सोऊ। आपनी सूझ तौ रहो आपनी मेरी सुनौ तो कहै किन कोऊ। ठाकुर या ब्रज गांव के लोग चवाई कहैं तुम एक हौ दोऊ । प्रीति इमैं तुमैं टूटि गये की अबै लौं प्रतीत न मानत कोऊ ।। चौहट कौ मिलिबौ तोरह्यो मिलिबो रह्यो औचक साँझ सबेरो। और इती बिनती तुम सो हरि आइ अगीत पछीत न घेरो। ठाकुर जो मिलि जैये कहूं मग तो जहँ लो इकही टक हेरो। या ब्रज के ब्रजबासी सबै बद नाम करें तुम्हरौ अरु मेरो ॥ हरि जूकी गैस यह मेरी पौर अगवासो, यां हैकड़ो चाहौं मोहिं काम धनौ घर तापै घरहाई दुख हाई सोर पारती हैं, बास छोड़ दीजै कै निकसिबो डगर को।