पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१२८

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साधन कथावाचक आज भी लिया करते हैं। आख्यानों के प्रावरण में जो भाव जनता के सामने आते हैं उनका उनपर पूरा पूरा प्रभाव पड़ता है ! परंतु उनके सामने उनका रूप खड़ा जो हो जाता है। परंतु सूफियों के श्राख्यानों की इति यहीं नहीं हो जाती। उनका सच्चा रूप तो तब प्रकट होता है जब पुराणों की भाँति उनमें भी गहन तत्त्वों का मनोहर चित्रण किया जाता है और शास्त्रीय पद्धति पर अपने मत के निरूपण के लिये उनमें भी उचित स्थल हूँढ लिया जाता है । हम कह ही चुके हैं कि प्रेमी सूफियों को अपने सच्चे प्रेम-प्रसार के लिये कठमुल्लाओं की हुज्जत,काजियों को कट्टरता और शासकों की क्रूरता का मुँह बंद करना था। निदान उन्होंने संवादात्मक प्रणाली को ग्रहण किया । कहने की बात नही कि इसके कारण एक और तो उनके गूढ़ भावों के प्रदर्शन में रमणीयता और सुबोधता आ गई और दूसरी और नाना प्रकार के इसलामी आक्षेपों से उनकी रक्षा भी हो गई। जो बात इस- लाम के प्रतिकूल समझी जानी थी संवादों में वही किसी अन्य पात्र के मुँह में रख दी जाती थी। जो इस प्रकार अपने मूल रूप में जनता के सामने आ भी जाती थी और कठमुल्लाओं के कोप से बची भी रहती थी । कहते हैं कि जब हाफिज़ सा निपुण कवि अपने एक पद्यांश के कारण बुरी तरह फंस गया था तब उसने अपने एक मित्र के अनुरोध से उसे एक मसीही के मुंह में रख कर इसलामी चंगुल से अपनी जान बचा ली थी। संवादों के रूप में मौलाना रूमी ने तसन्युफ का इतना भव्य चित्रण किया कि उनकी मसनवी को पहलबी का कुरान कहा जाता है। अस्तु मसनवियों की तसव्वुफ में वही प्रतिष्ठा है जो सनातन धर्म में पुराणों और बौद्ध मत में जातकों की है। मौलाना रूमी अपनी मसनवी को कुरान की विशद व्याख्या कहते और घोषणा करते है कि उसमें उन्होंने कुरान का सार स्वींच कर रख दिया है और हड्डी कुत्तों के लिये फेंक दी है। अन्य सूफी मसनवियों को भी इसी दृष्टि से देखना चाहिए। अन्यथा उनका भेद न मिलेगा। सूफीमत के विवेचन में मसन वियों से पूरी मदद मिलती है। उनमें तसव्वुफ के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है । पर सूफी हृदय का पता गजल से ही चलता है। मसनवी ईरान की अपनी चीज है। मत प्रतिपादन के लिये ईरानी