पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१५० तसव्वुफ अथवा सूफीमत मनुष्य जमाल और जलाल के योग से बना है। उसके पिंड में जो कुछ है वही ब्रह्मांड में विखरा पड़ा है । वह सृष्टि-शिरोमणि और अल्लाह का प्रतिरूप भी है। उसमें अल्लाह की रूह है। उसकी आवश्यकता अलाह को इसलिये है कि वह अपने को व्यक्त कर सके । उसे अलाह की आवश्यकता इसलिये है कि उसकी सत्ता का पारमार्थिक दर्शन हो और वह सदा बना रहे । अरबी के इस कथन से स्पष्ट है कि अल्लाह इंसान में श्रात्मदर्शन करता है। इंसान तत्त्वतः हक है। हक में ही उसका उदय और हक में ही उसका अस्त होता है। सूफियों मे से किसी के मत में तो परम सत्ता में जीव का लोप सर्वथा और किसी के मत में अंशतः ही होता है। किसी की दृष्टि में शराब पानी की भाँति, किसी के मत मे नदी-समुद्र की नाई और किसी के विचार में प्राग-लोहा की तरह, यह मिलन होता है। जो हो, और जैसा हो, पर इतना तो प्रक ही है कि सूफी महामिलन के भूख हैं और दिन-रात प्रियतम के रोम-रोम में समा जाने के लिये प्राकुल हो तड़पा करते हैं । वे कभी भी अपने को अल्लाह से भिन्न नहीं देख सकते । सदा उसीका और उसीमें होकर रहना चाहते है; कुछ उससे छिटक कर दुर अलग रहना नहीं । यदि ध्यान से देखा जाय तो सूफीमत में 'कल्ब' की महिमा अपार है। वह अल्लाह का मंदिर और सत्य का दर्पगा है, साक्षात्कार के लिये उसका परि- मार्जन अनिवार्य है। सूफी उसको भौतिक मानने में संकोच करते हैं। उनका मत है कि कल्ब अध्यात्म का आधार और अल्लाह का अधिष्ठान है। वास्तव में कल्ब मांसपिंड नहीं, एक विशेष करण है जिसका धर्म सत्य-ग्रहण और सत्य प्रकाशन है। जिली ने कल्ब का एक चित्र उपस्थित कर सिद्ध किया है कि उसके मुत्र पर किस प्रकार अन्लाह के नामों के प्रतिबिंब पड़ते हैं और उसका पृष्ट किस प्रकार उनसे वंचित रह जाता है। सूफियों ने कल्ब के विषय में जो कुछ कहा है उससे प्रस्तु, (१) स्टडीज इन इसलामिक मिस्टीसीपम, एपिंडिक्स २ । (२) जायसी ग्रन्थावली भूमिका, पृ० १७०.३ । (३) स्टडीश इन इसलामिक मिस्टीसीज्म, पृ० ।