पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१७१

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत जननी है । फरिश्ते उसी से उत्पन्न होते हैं। जिली रूह को 'मुहम्मद', 'कुब', 'कलम' और न जाने क्या क्या सिद्ध करता है। रूह के इस परम म्प से हमारा कुछ काम नहीं सरता । हमें तो रूह के उस अंग पर विचार करना है जो पिंड में प्रविष्ट है। सूफी रूह को भी कल्ब की तरह अभौतिक मानते हैं। जिली का कहना है कि कुरान में आदम में जो रूट फूकने की वार्ता है वास्तव में वह कब की ओर संकेत करती है। रूह और कल्व के संबंध में हम कह सकते हैं कि कल्ब एक करगा या साधन है जिसका उपयोग रह करती है । मद के लिए कब दर्पण है। जिसमें उसे परम सत्ता का साक्षात्कार होता है । झट्ट को हम सामान्यतः अान्मा कह सकते हैं । जे परमात्मा की धुन में लीन रहती है। इंसान में नफ्स और म्ह के अतिरिक्त एक चीज और होती है। सूफी उसे 'अल' कहते हैं। मनुष्य में या तो नफ्स की प्रधानता होगी या अक्ल अथवः रूह की । सुफी उनको क्रमशः अधम, मध्यम और उत्तम बताते हैं । अक्ल के विषय में कुछ पहले भी कहा जा चुका है। सूफी अन और इल्म का प्रसार नहीं चाहते। उनकी दृष्टि में उनसे नफ्स का निरोध नहीं होता, बल्कि उसको और भी मदद मिल जाती है। उनके विचार में इल्म वह आवरण है जो रूह को इस लेती और साक्षात्कार नहीं होने देती है। सूफी इन्म को ईश्वरीय देन नहीं समझते। उनकी दृष्टि में तो वह बुद्धि-विलास ही है। हाँ, बारिफ ( प्रज्ञा ) का सत्कार अवदा करते हैं। 'आजाद' सूफी तो मौजी होते ही हैं ; उन्हें कुरान के इल्म की भी चिंता नहीं होती। फिर किसी दूसरी किताब की तो बात ही क्या ? सूफी इल्म और अक्ल की उपेक्षा इसलिये करते हैं कि उनके प्रपंच में पड़ने से परमार्थ का बोध नहीं हो सकता। हाँ, व्यवहार में उनकी अधिक उपयोगिता अवश्य है पर उनसे नफ्स को उत्कर्ष भी मिल सकता है। अतः उनके संपादन में लीन न हो सतत अभ्यास में निरत होना चाहिए। कारण कि म्वारिफ के उदय से इल्म और अक्ल की जरूरत नहीं रह जाती और रूह को परम रूह का साक्षात्कार हो जाता है।