पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१८३

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१६६ तसम्वुफ अथवा सूफीमत अस्तु, सूफी-साहित्य के वास्तव में तीन अंम हैं। यद्यपि सूफियों की प्रतिष्टा उनके मुख्य अंग काव्य पर ही अवलंबित है तथापि उसके अन्य अंगों का भी, सूफी-साहित्य की समीक्षण में, पूरा पूरा विचार होना चाहिए । तसव्वुफ के विवेचन में सूफियों के उन निबंधों तथा ग्रंथों का प्रमुख स्थान है जिनमें उनके प्राचार्यों ने तसव्वुफ पर विचार और स्वमत का प्रतिपादन किया है। सूफीमत के परिपाक में प्रसंगवश जहाँ तहाँ उन प्राचार्यों का उल्लेख किया गया है । यहाँ इतना और स्पष्ट कह देना है कि इस प्रकार के ग्रंथों में भी स्वतंत्र चिंतन और आत्म-जिज्ञासा की अपेक्षा उन बातों से बचने पर ही अधिक ध्यान दिया गया है जिनके कारगा उनका मत इसलाम के प्रतिकूल समझा जाता था और लोग उन्हें जिंदीक समझते थे। सूफियों ने अपने विचारों की जो कुरान या इसलाम से संगति बैठाने की चेष्टा की उन्हीं का व्यवस्थित रूप इन निबंधों वा ग्रंथों में प्रायः पाया जाता है। इस- लाम के उत्थान से मुसलिम समाज में जो नाना प्रश्न उठे थे उनके समाधान का प्रयत्न बहुतों ने किया। मजहबी विचार होने के कारण उनको मजहबी जबान में लिखना उचित समझा गया। यही कारण है कि सूफियों के इस कोटि के विवेचना- त्मक ग्रंथ अधिकतर अरबी में ही हैं सूफीमत की प्रतिष्ठा अथवा तसव्वुफ की संस्थापना के लिए लिखे तो बहुत से ग्रंथ गए, किंतु ख्याति कुछ ही को मिली। सूफीमत के संस्थापकों में गज्जाली को मुख्य कहना चाहिए। उसकी 'इहयायउलूमुद्दीन' ने सचमुच तसव्वुफ को जीवन- दान दिया। उसके अनंतर एक भी विचारशील मुसलमान ऐसा न हुआ जिस पर तसव्वुफ का कुछ 'प्रभाव न पड़ा हो । श्रीमैकडानल्ड' का तो यहाँ तक कहना है कि सभी विचारशील मुसलमान सूफी हैं। यह बात दूसरी है कि बहुत नहीं जानते कि वे वास्तव में सूफी हैं, जो हो, गज्जाली का यह प्रयत्न प्रशंसनीय है। उसके पहले भी अनेक सूफियों ने तसन्युफ पर कुछ न कुछ लिखा था। यजीद, इस बात को (१) दी हिस्टरी पाव फिलासफो इन इसलाम, पृ० १५५ । (२) ऐस्पेक्ट्स आव इसलाम, पृ० ११५ ।