पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१९२

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पही दशा थी। उसमें रूढ़ियों का प्रचार खूब हो गया । सूफी प्रेम और ज्ञान की चिंता छोड़ पद्धति-विशेष पर बहस करते और 'खानकाहों में अपनी अलग अलग डफली बजाते थे। मानव-हृदय से उनका नाता टूट सा गया था । मंगोलों ने बात की बात में इसलाम के दर्प को चूर कर उसके साम्राज्य को छन्नभिन्न कर दिया । ईरान जब स्वतंत्र हो गया तब उसे अरबी इसलाम की अपेक्षा अपनी अधिक चिंता हुई । ईरान तसव्वुफ का स्रोत था। फारसी-साहित्य में सूफियों की कविता ही नहीं कुछ तस्वचिन्ता भी 1 यद्यपि ईरान के अनेक सूफी विद्वानों ने अरबी में तसञ्चुफ पर ग्रन्थ रचे तथापि फारसी में ही सूफियों का हृदय खुला और उनके प्रेम-प्रवाह ने फारसी के द्वारा ही इसलाम को तृप्त किया। बात यह है कि ईरान ने अपनी सत्ता अलग बनी रखने में कभी भूल न की । इसलाम के सपाटी शासन में भी इसने अपने संस्कारों की रक्षा तथा अध्यात्म के लिये एक ओर अद्वैत को चुना तो दूसरी और आस्था के लिये अली को अपना लिया । अली में विशेषता यह थी कि वे कवि, व्याख्याता, वीर और सुशील भी थे। उनमें अरबों को खड़ी उद्दण्डता न थी। उनका विवाह रसूल की लाडली लड़की बीबी 'फातिमा से हुआ था और वे मुहम्मद साहब के चचेरे भाई भी थे। कहा तो यहाँ तक जाता है कि मुहम्मद साहब ने उन्हीं को अपना 'खलीफा' भी चुना था; परंतु जब वे रसूल के दफनाने की चिंता में मग्न थे तभी उमर ने अवसर देखकर चालाकी से अबूबकर को खलीफा बना दिया और अली का अधिकार छीन लिया। अली में एक बात और भी थी। उनकी पुत्रवधू ईरानी राजदुहिता थी। उनके वंशजों में ईरानी रक्त था । कारण कुछ भी रहा हो, यह स्पष्ट है कि ईरान ने अली का दिल खोलकर स्वागत किया और सूफी भी पहले उन्हीं को लेकर आगे बढ़े। परन्तु, धीरे धीरे अली के वंशजों को इतना महत्त्व मिला कि ईरान सर्वथा इमामपरस्त हो गया और ईरानी प्रेमी से भक्त बन गए। आलंबन की परोक्षता जाती रही । रति के आलंबन शरीरधारी साकार इमाम बने। उसकी दुरूहता और गुह्यता न रही। हृदय को प्रत्यक्ष हृदय मिला और वह उसकी आराधना में लीन हुआ।