पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२०९

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१९२ तसव्वुफ अथवा सूफीमत साधुता के लिए कश्मीर में मसीह की कब्र बढ़ रहे हैं। श्री सर सैयद अहमद खों, के अनुयायी इसलाम के हित में दत्तचित्त हैं और समय के अनुसार उसका अर्थ लगाते हैं । निजाम हैदराबाद इसलामी साहित्य को उई में आगे बढ़ा रहे हैं। अली- गढ़ का मुसलिम विश्वविद्यालय पश्चिम की प्राणालो पर अँगरेजी में शिक्षा दे रहा है। अरबी और फारसी केअनेक मकतब चल रहे हैं। संक्षप में, चारों ओर से इसलामी साहित्य को प्रोत्साहन मिल रहा है और वह बढ़ भी खूब रहा है। पर कही कोई खानकाह नहीं बनी है। उसकी ओर किसी का ध्यान नहीं है। भारत के मुसलमानों के विषय में अब तक जो कुछ कहा गया है उसका प्रयोजन है कि हम उनकी श्राधुनिक प्रगति को भलीभाँति जान लें। जब तक हम भारत की मनोवृत्तियों से अच्छी तरह परिचित नहीं हो जाते तब तक हमें तसव्वुफ की वर्तमान स्थिति का वोध भी नहीं हो सकता। सो भारत के मुसलमानों की जिन प्रवृत्तियों का दर्शन किया गया है उनसे स्पष्ट ही है कि भारत के मुसलमान इस समय तसन्युफ की उपेक्षा ही नहीं उसका विरोध भी कर रहे हैं । वहाबियों की क्र दृष्टि यहाँ भी है । अस्तु, इस समय इसलाम को यदि जरूरत है तो उन दरवेशों की जो प्रेम की अोट में इसलाम का प्रचार करें और उसकी शक्ति को अपने त्याग और विचार के द्वारा प्रगट कर मुसलमानों को पुष्ट बनाएँ; कुछ उन सच्चे सूफियों की नहीं जो किसी प्रकार के भी भेदभाव को नहीं देखते और संसार के हित में निरत रहते हैं । आज मुसलिम-संघटन की चेष्टा में लोग तसव्वुफ को भुत्ला रहे हैं और सर पाया खाँ सा 'कान्हा' भी अपनी प्राचीन परंपरा को तिलांजलि दे इसलामी संघटन में तत्पर है । और 'हाली' तथा 'अाजाद' के अनुयायी इस- लामी संकीर्तन में लगे हैं । फारसी तथा उर्दू में जो रचनाएं आज हो रही हैं उनमें यद्यपि वही 'इश्क' और वही 'साको' बना है तथापि उनका लक्ष्य अब तसव्वुफ नहीं इसलाम हो गया है । डाक्टर 'इकबाल' के अध्ययन से तसव्वुफ की हिन्दी प्रगति का ठीक ठीक पता चल जाता है । 'इकबाल' . हिन्दी' से 'मुसलिम' (१) दी होली कुरान, पृ० ६८६-७ ।