पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२११

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११. भविष्य सूफीमत के संबंध में अब तक जो कुछ कहा गया है उससे यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि मूफियों की दृष्टि किस ओर मुड़ी है और भविष्य में उनके प्रेम में कौन से परिवर्तन किस ढंग पर होने वाले हैं। उनकी अाधुनिक परिस्थिति को देख कुछ लोगों की धारणा हो चली है कि अब सूफियों का भविष्य अच्छा नहीं । सूफियों की भावी प्रगति को ताड़ लेना यद्यपि अासान नहीं तथापि उसकी सर्वथा उपेक्षा भी नहीं हो सकती । कारण, भविष्य हमारी आँखों से जितना ही अोझल रहता है उतना ही उसे जानने की हमारी प्रबल इच्छा भी होती है। जिन बातों की हमने इतनी छानबीन की है उनकी अवहेलना हम किस प्रकार कर सकते हैं ? उनके भविष्य को देखे बिना हमें किस तरह संतोष हो सकता है ? तो, उनका भावी रूप हमारी आँखों के सामने आते आते रह जाता है और हमें उसे देखने के लिये और भी उत्कट उत्कंठा हो जाती है। बस, जब हम देखते हैं कि इस छत-छंद के युग में लोग अपनी कलु- षित वृतियों की तृप्ति के लिये अन्यों का विध्वंस देश-काल और जाति की ओट में गर्व के साथ करते हैं और साथ ही विश्व-प्रेम का कीर्तन भी करते जा रहे हैं तब हमारी आँखों के सामने अंधेरा छा जाता है और भुलावे के इस विश्वप्रेम से हमें संतोष नहीं होता । विश्व-प्रेम की वास्तविक सफलता तो सूफियों के उस प्रेम पर अवलंबित है जो मनुष्य की सामान्य वृत्तियों को ऊपर उठा उस सहज भावभूमि पर रख देता है जिसका क-ऋण हमारा पालम्बन है ; उस लोभ या कपट प्रेम पर कदापि नहीं जिसका संपादन प्रम की ओट में पश्चिम प्रतिदिन करता जा रहा है। इसमें संदेह नहीं कि गत महा संग्राम में अपनी कलुषित वृत्तियों के नग्न तांडव को देख यूरोप दहल उठा और व्याकुल हो विश्व-प्रेम का स्वप्न देखने लगा। परंतु उसके उस विश्व प्रेम में भी प्रेम का वास्तविक रूप न आ सका और