पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२४७

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत के कारण उनमें कुछ अनबन सी हो चली है। भारत के भविष्य में सूफियों का क्या हाथ होगा यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता; पर इतना तो सत्य है कि हिंदू. मुसलिम एकता का प्रशस्त मार्ग वही है जिस पर सूफी आजतक चलते आए हैं और इसलाम के पक के पाबंद भी बने रहे हैं। भारत को बहुत से पंडितों ने तसव्वुफ का घर कहा है और मुसलिम भी उसे आदम का अड्डा मानते ही हैं। बस, ऐसी स्थिति में यह संभव नहीं कि भारत और तसव्वुफ के संबंध को यहाँ खोल कर स्पष्ट दिखा दिया जाय । भारत में रह कर सूफियों ने जो कुछ किया उसका परिचय स्वतंत्र रूप से फिर कभी दिया जायगा । यहाँ तो इतना ही कह देना प्रर्याप्त है कि यदि सूफी न होते तो इसलाम भारत में कभी भी जड़ नहीं पकड़ता। इसलाम के प्रति हमारी जो कुछ श्रद्धा है उसका सारा श्रेय इन्हीं सूफियों को है। नहीं तो कर मुसलमानी शासन को कौन पूछता ? सच तो यह है कि भारत को अाज उन्हीं सच्चे सूफियों की जरूरत है जो कावा और बुतखाना को एक ही समझते और खुद दिल के चिराग से रोशन होते है; कुछ किसी आसमानी किताब के अंधभक की. नहीं । भारत की भाँति ही भारत के उपनिवेशों में भी इसलाम का प्रचार हो गया । जावा, सुमात्रा, बोर्नियो प्रभृति द्वीपों में भारत के तिजारती मुसलमान जाते थे और अक्सर देखकर तलवार भी चला लेते थे। एशिया में इसलाम को जिस व्यापक और प्रतिष्ठित मत का सामना करना पड़ा वह कृपालु बौद्धमत था। अशोक ने बौद्ध शासकों के सामने जो अादर्श प्रस्तुत किया वह देश-दृष्टि से घातक ही था। इसलाम की सफलता का एक प्रधान कारण बौद्धमत का तृष्णाक्षय भी है। अहिंसावादी बौद्धों ने भारत के वल-वीय को बहुत कुछ पंगु और भ्रष्ट कर दिया था। उधर उनके सद्- गुणों और सद्भावों को सूफियों ने ग्रहण कर लिया था। उसके कारण इसलाम भी अब भला दीखता था । इधर मुसलिम बन जाने से लोग इसलामी क्रूरता से बच भी जाते थे और उन्हें अनेक सुविधाएँ भी मिल जाती थीं । फलतः उक्त द्वीपों में भी इसलाम का प्रचार हो गया। किन्तु यह इसलाम मुल्ला या काजियों का बंधा हुआ कठोर इसलाम न था; प्रत्युत यह तो सूफियों का स्वच्छ और उदार इसलाम था। इस प्रकार सूफियों के प्रयत्न एवं हिंदू-मुसलिम संस्कारों के संयोग से जिस संकर मत का प्रसार