पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२६३

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२४६ तसम्बुक जयवा सुफीमत की ओर से हुई जो प्रारम्भ में बौद्ध थे फिर मुसलिम बन गये । चरामका के मंत्रित्व में अनेक ग्रंथ संस्कृत से अरबी में अनूदित हुए । कहा जाता है कि इन अन- दित ग्रन्थों में कोई वेदान्त संबंधी ग्रंथ नहीं मिलता। ठीक है, पर इससे यह निष्कर्ष तो नहीं निकलता कि हारू रशीद तथा मंसूर के शासनकाल में जो व्यापक शास्त्र. चिंतन चल रहा था उसका भारतीय दर्शन अथवा वेदांत से कुछ संबंध ही न था ? वेदांत के विषय में इतना याद रखना चाहिये कि इसकी गणना रहस्य -विद्या में होती है और इसका वितरण भी अधिकारियों में ही होता है। वेदांत में जो अनेक पाद चल पड़े हैं घे अपेक्षाकृत इधर के हैं। शांकर वेदांत को बौद्ध दर्शन से विशेष सहा. यता मिली। ईरान प्रभृति प्रांतों में महायान शाखा का बोलबाला था जिसमें धीरे धीरे बहुत कुछ गुस्थता और भक्ति का योग हो गया था। महायान के भीतर जो सह- जयान श्रादि अनेक यान चल पवे थे उन्हीं से सूफियों का विशेष परिचय हुअा। इन यानों का निर्वाण कोरा निर्वाण न या नहीं, इनमें श्रानन्द का भी पूरा प्रबंध था। बुद्ध को सूफियों ने किस दृष्टि से देखा इसका पता शायद इतने से ही ठीक ठीक चल जाता है कि सूफी “वुत के बदले में कोई ले तो खुदा देते हैं"। अर्थात् सूफी बुत के लिये खुदा को अलग डाल देते हैं। हाँ, तो सैयद सुलैमान साहब को इस बात का गर्व होना चाहिये कि उन्होंने अपनी खोज से सिद्ध कर दिया कि हसरिया वस्तुतः खिजिरिया या समनिया (श्रमण) से बना है । इस प्रकार इसलाम के भीतर 'बोस श्रासफ़' के साथ ही साथ बुद्ध के दो और रूप हो गए। सूफियों का बुत और खिज्र से घना (१) अल्लामा सैयद सुलैमान नदवी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'अरब व हिंद के तालुकात' में इसे भलीभाँति दिखा दिया है कि वास्तव में बरामका' बौद्ध थे। उन्होंने इसे 'परमक' का परिणाम बताया है (२) कुछ विद्वानोंने हीनयानी निर्वाण के आधार पर 'फना' को निर्वाणसे भिन्न सिद्ध करने का प्रयत्न किया है, पर यह उनका शुद्ध भ्रम है। बाद के 'यानों के निर्वाण में आनन्द का विधान हो गया था। (३) भरव व हिन्द के तालुकात, पृ० २२६-३० ।