पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२६५

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तसबुफ अथवा सूफीमत में वेदान्त का रूप उतना व्यक्त और व्यापक न हो सका था जितना अरबी के समय तक हो गया। हल्लाज के भारत-भ्रमण का दृढ़ प्रमाण है किंतु अरबी की भारत यात्रा का कोई उल्लेख नहीं । पर अरबी ने जो पूर्व की यात्रा की थी उसका विवरण कुछ इस प्रकार है--सन् ५६८ हि. में स्पेन से उसने प्रस्थान किया। उसी साल मक्का पहुँचा । फिर सन् ६०१ में बारह दिन तक वगदाद में रहा । सन् ६०८ में फिर बगदाद वापस आया और सन् ६११ में फिर मक्का पहुँचा । अंत में दमिश्क को अपना निवास स्थान बनाया और वहीं सन ६३८ में सदा के लिये सो रहा । कहा जाता है कि एक योगी की सहायता से उसने अमृतकुंड के अनुवाद का संशोधन भी किया था जिसे अमीदीने मिरातुलमानी के नाम से कुछ पहले तैयार किया था। उपर्युक्त विवरण के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि सन् ५९८ हि ० से लेकर सन् ६३८ हि. तक अरबी का स्पेन से कोई संबंध न रहा । जीवन के इस अंतिम ४० वर्ष को एशिया में व्यतीत करनेवाला व्यक्ति एशिया का न हुआ यह आश्चर्य की बात है । कब तो उसकी अब भी एशिया में ही है। लोग उसे स्पेनी समझा करें । तो विचारणीय बात यह है कि अरबी ने प्रथम बार बगदाद में केवल १२ दिन निवास किया और फिर शीघ्र ही कहीं अन्यत्र की यात्रा की। फिर सन् ६०८ में लौटकर बगदाद आया । बगदाद से कहाँ गया और सन् ६०१ से सन ६०८ तक कहाँ रहा इसका सन्तोष-जनक उत्तर हमारे पास नहीं है । पर हम उसकी यात्रा की प्रगति, प्रवृत्ति तथा विचार-धारा के आधार पर तुरत कह सकते हैं कि (१) ए लिटरेरो हिस्टरी प्राव पर्शिया, प्रथम भाग, पृ० ४३१ । (२) एमाइलोपीडिया आव इसलाम, प्रथम भाग, (अरवी पर निबंध )। (३) दी रेलिजस पेटीच्यूड एंड लाइक इन इसलाम, १० १०१ । (४) सैयद सुलैमान साहब का कहना है कि अमृतकुद का अरबी में अनुवाद एक नवमुसलिम पंडित और एक सूफीने मिलकर 'ऐनुलहयात' के नामसे किया था। सम्भव है कि एक ही ग्रंथ का अनुवाद भिन्न मिन्न समयों में भिन्न भिन्न व्यक्तियों ने किया हो।