२० तसय्युफ अथवा सूफीमत आराधना में मादन-भाव की अोप बराबर बनी रही और समय पाकर 'कबाला' के रूप में फूट निकली। यहाँ यहूदियों के 'कबाला' एवं 'तालमंद' के विषय में अधिक न कह केवल इतना कह देना पर्याप्त है कि उनमें गुह्य-विद्या का बहुत कुछ सन्निवेश है और वे हैं भी एक प्राचीन परंपरा के उज्वल रत्न । उनके अवलोकन से मादन-भाव के इतिहास पर पूरा प्रकाश पड़ता है। हाँ, तो यहोवा इसराएल की संतानों का नायक था, नेता था, स्वामी था, शासक था, अधिपति था, संक्षेप में प्रियतम के अतिरिक्त सभी कुछ था। उसकी दृष्टि में उसके सामने किसी अन्य देवता की उपासना अक्षम्य व्यभिचार ही नहीं, घोर पातक एवं भीषण पाप की जननी भी थी। उनके विचार में यहोवा रति-क्रिया से सर्वथा मुक्त था, अतः उसके मंदिर अथवा भाव-भजन में किसी प्रकार उल्लास को अाश्रय नहीं मिल सकता था। फिर भी हम स्पष्ट देखते हैं कि उसके मंदिरों में देवदासी तथा देवदासियों की चहलकदमी तो थी ही; उसके भावुक भक्तों ने उसके लिये पत्नी का विधान भी कर दिया था । यद्यपि यहोवा के साहसी सेवकों ने धीरे- धीरे उसके भवन से पवित्र व्यभिचार को खदेड़ दिया तथापि उसका सूक्ष्म रूप उसके उपासकों में बना रहा और यहोवा व्यक्ति विशेष का पति भले ही न रहा हो, पर इसराएल-कुल का भर्ता तो अवश्य था। हसी ने यहोवा के इस रूप पर ध्यान दिया। उसको अपनी पत्नी के प्रेम-प्रसार में यहोवा के प्रेम का प्रमाण मिला । उसने उसी प्रकार जुम्र को, जो संभवतः देवदासी थी, प्यार किया, उससे विवाह किया, उसके व्यभिचार को क्षमा किया, जिस प्रकार यहोवा ने इसराएल की संतानों से प्रेम किया, उनका पाणि-ग्रहण किया, और उनके व्यभिचारों को क्षमा कर सदैव उनका पालन-पोषण करता रहा । यहोवा और इसी के प्रेम-प्रसार में वास्तव में केवल आलंबन का विभेद हैं, रति-प्रक्रिया का कदापि नहीं । जाति और व्यक्ति (१) हे लिटरेचर, भुमिका । (२) इसराएल, पृ० १२४ । (३) सोशल टीचींग्ज आव दी प्राफेट्स एण्ड जीजज, पृ. ५४ ।