पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विकास अरब के मंदिर में जो दृश्य उपस्थित हुए, सत्संग में जिन मतों का परिचय मिला, उनसे उसका चित्त व्याकुल तथा विह्वल हो उठा। वह सोचने लगा कि अल्लाह की सारी कृपा इब्राहीम के एक ही पुत्र की संतानों पर क्यों ? इसमाईल को संतानों ने उसका क्या बिगाड़ा है ? धीरे धीरे उसमें जाति तथा अन्लाह की चिन्ता बढ़ी। स्वभावतः स्वतन्त्र होते हैं । मन की पराधीनता उमे खलने लगी। व्यग्र हो वह अलाह की आराधना में तन्मय हो गया। वह नगर के बाहर चला जाता और 'हेरा' की एकान्त गुफा में अल्लाह की आराधना में घंटों पड़ा रहता। अन्त में अन्लाह का साक्षात्कार उसे एक किशोरै के रूप में हो ही गया। वह भावावेश में आने लगा । अन्लाह ने जिवरील के द्वारा उसके पास, व्यक्त और अव्यक्त, प्रत्यच और परोक्ष रूप में इसमाईल-बंश के लिये एक ग्रन्थ भेजना आरम्भ कर दिया। वह पढ़ न सका । जिवरील ने कहा---'पढ़'। बस, कुरान की रचना प्रारम्भ हो गई। मुहम्मद साहब (मृ. ६८१ वि०) कर्मशील नबी बन गए थे। उन्हें विश्वास हो गया था कि यहदियों और मसीहियों की श्रासमानी किताबें अपने वास्तविक रूप में नहीं हैं । अतः उन्होंने घोषणा कर दी कि यहूदी और मसीही 'अहले किताब' होते भी सच्चे मन से भ्रष्ट हो गए है और इब्राहीम के असली मत की अव- हेलना कर अन्य मतों का प्रचार करते रहे हैं । उनका यह भी दावा है कि अल्लाह प्रत्येक जाति को, उसी की भाषा में आसमानी किताब भेजता है। अरबों के लिये उसकी आसमानी किताब कुरान है जो उसके आखिरी रसूल पर नाजिल हो रही है । मुहम्मद साहब ने कुरान के प्रमाण पर अपने को रसूल सिद्ध किया और नाना देवी-देवताओं का खंडन कर अल्लाह का एकाकी शासन प्रतिष्ठित किया। अरबों को सहसा उन पर विश्वास न हुआ। उनका विरोध प्रारंभ हुआ। उनकी ओर से कहा गया कि मुहम्मद साहब उम्मी हैं, पढ़ना-लिखना जानते ही नहीं, फिर भला कुरान उनकी रचना किस प्रकार हो सकती है ? जब लोगों ने विश्वास न किया (१)स्टडीज इन इसलामिक मिस्टीसिज्म, पृ. ८३ । ३