पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/७१

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५४ तसव्वुफ अथवा सूफीमत किया; मंसूर अात्म-चिंतन में इतना निरत था कि उसने अपने को सत्य कहा । प्रांसीसी पंडित मैसिगनन के अनुसंधानों से मंसूर के संबंध में जहों अनेक तथ्यों का पता चला है वहीं उसके प्रकृत उद्घोष का उद्घाटन भी संदिग्ध हो गया है। सफीमत के प्रकांड पंडित उसको द्वैती सिद्ध करना चाहते हैं, पर हल्लाज द्वैतवादी कदापि न था; अधिक से अधिक वह विशिष्ट अद्वैती था। सूफियों ने तो उसे अद्वैत का विधाता माना है। हुल्लाज के आविर्भाव से तसव्वुफ सफल हो गया। उसने प्रेम को परमात्मा के सत्त्व का सार सिद्ध किया। उसका कथन है-"मैं वही कै. जिसको प्यार करता हूँ, जिसे प्यार करता हूँ वह मैं ही हूँ। हम एक.. शरीर में दो प्राण है। यदि तू मुझे देखता है तो उसे देखता है और यदि उसे देखता है तो हम दोनों को देखता है. 1 हल्लाज के अध्यात्म के संबंध में कुछ कहने का ग्रह अवसर नहीं । यहाँ तो इतना ही स्पष्ट करना उचित है कि हल्लाज 'हुलूल' का प्रतिपादक था । उसने देवलोक की उद्भावना की; और 'लाहृत' एवं 'नासूत' ( देव एवं मर्त्य ) का विवेचन किया। मंसूर ने इबलीस को मित्र-भाव से देखा। उसकी दृष्टि में इब- लीस ही अल्लाह का सच्चा भक्त है; क्योंकि अन्य फरिश्तों ने अल्लाह के आदेश पर आदम की उपासना की, पर इबलीस अपने वत पर अड़ा रहा और अनन्य भाव से उसने अल्लाह की आराधना की। मंसूर के प्रयत्न से मुहम्मद साहब को भी उत्कर्ष मिला । हल्लाज ने 'नूर मुहम्मदी' को नबियों का उद्गम सिद्ध किया, 'अम्र' का पालन अनिवार्थ माना; फिर भी मुसलिम उसके 'अनव्हक' को न सह सके, उसको प्राणदंड का भागा सिद्ध कर दिया। मंसूर का बध 'रक्त-बीज' का बध था। मुल्लाओं का दंडविधान तसत्रुफ का खाद्य बन गया। उस समय सूफीमत के प्रसार का एकमात्र कारण अंतःकर गण का प्रवाह ही नहीं था, मोतजिलियों के शमन तथा इसलाम की प्रतिष्ठा के लिये जिन (१) स्टडीज़ इन इसलामिक मिस्टीसीज़्म, पृ० ८४ । (२) दी आइडिया श्राव पर्सनालिटी इन सूफीम, पृ० २६-३३ ।