पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/७२

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परिपाक बातों की आवश्यकता थी उनका भांडार बहुत कुछ सूफियों के हाथ में था। श्री इकबाल' की तो धारणा ही कि हल्लाज अपने 'अनन्हक' से मोतजिलियों को चुनौती दे रहा था । 'कश्फ' की उद्भावना से इसत्नाम बहुत कुछ सुरक्षित हो गया । फलतः 'अक्ल' की प्रतिष्ठा घटी और 'नक्ल' की मर्यादा बढ़ी। 'बिला कैफ' का माहात्म्य बढ़ा । 'कश्फुल्महब' के देखने से पता चलता है कि इस समय सूफियों के कई सिलसिले काम कर रहे थे। तसव्वुफ में प्राणायाम की प्रतिष्टा हो गई थी। वह दुरूह और गुह्य समझा जाता था । शिबली के पद्यों में अश्लील भाव झलकते हैं। फाराबा ( मृ० १००७) ने कुरान एवं दर्शन का समन्वय कर सूफीमत का मार्ग स्वच्छ करने की चेष्टा की; किन्तु नो भी सूफीमत को इसलाम की पक्की सनद न मिल सकी। सूफियों की धाक जम चली थी। कतिपय सूफियों ने अपने को नबियों से अधिक पहुँचा हुआ सिद्ध किया। अबू सईद ( मृ० ११०६) इसी कैंडे का सूफी था। उसके जीवनचरित से अवगत होता है कि उस समय जनता में सूफीमत का काफी सत्कार था। एक ग्रामीण ने रहस्य के उद्घाटन में उसकी पूरी सहायता की'। सईद ने स्पष्ट कह दिया कि यद्यपि सूफीमत का मूलाधार पीर है तथापि अन्य लोगों से भी ज्ञानार्जन किया जा सकता है । दीक्षा-गुरु के अतिरिक्त शिक्षा-गुरु भी मान्य है । खिरका ( चीवर ) और पीर का व्यापार व्यापक तथा उदार है । मत में स्वतंत्रता आवश्यक है। सईद 'समा' का पक्का प्रतिपादक और भक्त था। उसकी दृष्टि में विषय-वासना के विनाश के लिये समा एक अनुपम साधन है। उसके विचार में अंतःकरण की प्रेरणा पर ध्यान रखना कुरान का विधान है। हज की अवहेलना कर सईद ने पीरों की समाधि को ही हज माना। वह इतना उदार था कि कुरान पढ़ते समय नरक के कष्टों को देखकर रो पड़ता था और परमेश्वर से उद्धार के लिये आर्थना करता था। खुदी से वह इतना भयभीत था कि सदा अपने लिये (१) सिक्स लेक्चर्स, पृ० १३४ । (२) स्टडीज इन इसलामिक मिस्टीसीज्म, प्रथम अध्याय ।