पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/७४

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परिपाक कमी केवल एक ऐसे व्यक्ति की थी जिसमें दोनों का विश्वास हो, जिसे दोनों जानते- मानते और अपनाते हों, जिससे दोनों एक में दो और दो में एक हो सकें। संयोग से इसलाम में एक ऐसे ही महानुभाव का उदय हुना। उसके प्रकाश में आपस का वैमनस्य मिटा और उसने सिद्ध किया कि तसव्वुफ इसलाम का जीवन तथा इसलाम तसव्वुफ का सहायक है। उसकी धाक इसलाम में पहले से ही जम चुकी थी। लोग सुनना भी यही चाहते थे। फिर क्या था, तसव्वुफ को इसलाम की सनद मिलो। उसका व्यवसाय इसलाम में खुलकर होने लगा। तसञ्युफ इसलाम का दर्शन और साहित्य का रामरस हो गया। प्रेम के वियोगी और परमात्मा विरही परम आतुर व्यक्तियों का जीवन यह रसायन ही था जो उनको बार बार मिटाता-बनाता. मारता-जिलाता महामिनन की ओर अग्रसर करता हुआ अद्वैत का अनुभव करा रहा था। समन्वय की भव्य भावना ने इमाम गजाली (मृ० ११६८) को जन्म दिया । इसलाम उसकी प्रतिभा से चमक उठा । गजाली इसलाम का व्यास है। उसने धर्म, दर्शन, समाज और मक्ति-भावना का समन्वय कर इसलाम को परितः परिपुष्ट किया । उसने इसलाम को ईमान की क्रिया साबित कर दोनों का उपसंहार दीन में कर दिया। उलझनों के सुलझाने और अड़चनों को दूर करने में अधिकार-भेद बड़ा काम करता है । गजाली ने 'न बुद्धिभेदं जनयेत्' का आदेश दे गुह्य विद्या को गुप्त रखने का विधान किया। परंतु उसने इस प्रकार की व्यवस्था के साथ ही साथ इस बात पर भी पूरा ध्यान दिया कि जनता प्रतिभा के उत्कर्ष के साथ दर्शन एवं अध्यात्म का अनुशीलन कर सके । उसने भय की प्रतिष्ठा की। उसके विचार में इसलाम का प्राचीन भय जनता के लिये मंगलप्रद और अत्यन्त आवश्यक था। वह 'बिनु भय होइ न प्रीति' को अक्षरशः सत्य समझता था। भय को मनोरम बनाने के लिये उसने प्रेम का पक्ष लिया और कुरान के अर्थ अथवा ईमान के विषय में जो भाँति भाँति (१) मुसलिम थियालोजी, पृ० २१७-२४० । (२)दी हिस्टरी पाव फिलासफी इन इसलाम, पृ० १६७-८ ।