पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/८०

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आस्था प्रतिष्ठत है । अतएव सर्व-प्रथम उसीके स्वरूप का निदर्शन होना चाहिये। अल्लाह शब्द रूढ़ हो या यौगिक, इससे कुछ बहस नहीं । उसका प्रयोग महादेव का द्योतक एवं उसकी प्रधानता सर्वमान्य है, यही हमारे लिये पर्याप्त है । अल्लाह की अनन्यता या मुसलिम तौहीद में केवल इस बात का निषेध किया गया है कि देव-दृष्टि से अल्लाह के अतिरिक्त अन्य देवता नहीं है । उसमें किसी अन्य सत्ता का निराकरण नहीं है। कुरा या इसलाम यही कहता है कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई और देवता नहीं, यह नहीं कहता कि अल्लाह के अतिरिक्त ओर कोई सत्ता नहीं । चिंतन के अनुरोध से सफी इस अल्लाह को तिलांजलि दे हक के प्रतिपादन में लगे तो सही, किंतु उनकी आराधना अल्लाह को प्रतीक मानती ही रही। अल्लाह के विकास के सम्बन्ध में जो प्रवाद प्रचलित हैं उनके विवेचन की आवश्यकता नहीं। इतना तो सभी मानते हैं कि प्राचीन अरब नाना देवी-देवताओं के उपासक होते हुए भी अल्लाह को महेश्वर या सर्वप्रधान मानते थे। वस्तुतः मुहम्मदं साहब के अल्लाह बहुत कुछ प्राचीन अल्लाह ही है। अल्लाह के सम्बन्ध में मुहम्मद अनतर निर्गय के दिन दर्शन देगा। जब इस विषय मे भी विवाद छिड़ा और अल्लाह के मनरूप का प्रतिपादन कठिन हो गया तथ कहा गया कि अल्लाह निरपेक्ष ( तातील ) है । उमे हमारे अंगों या गुणों की आवश्यकता नहीं पड़ती । उसके बिना भी अपना काम कर लेता है। कुछ दार्शनिको को तातील से संतोष न सका। उन्होंने अल्लाह के निरंजन (संजाह रूप का प्रतिपादन किया और उसे निर्गुण बना दिया। (१) इस प्रसंग में मौलाना अबुलकलाम आजाद (अहमद ) का कहना है- "नले कुरआन से पहले अरबी में अल्लाह का लफ्ज़ ख़ुदा के लिये बतौर इस्मजात के मुस्तामल था जैसा कि शुअराय जाहिलिय्यत के कलाम से जाहिर है याने खुदा की तमाम सिफ़ते उसकी तरफ़ मनसूब की जाती थी। यह किसी खास सिफ़त के लिये मही बोला जाता था। कुरान ने भी यही बतौर इस्मजात के एस्तयार कियाऔर तमाम सिफ़तों को इसकी तरफ़ निसबत दी। (तर्जमानुलकुरान, तफसीर सूरत फातहा, जिल्दअव्वल स. १६३१ ई०, पृ० ८)