पृष्ठ:तितली.djvu/१०२

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सिर पर आ पड़ा था। वह बनावटी बड़प्पन से पीड़ित हो रहा था। उसके मन में साफ-साफ झलकने लगा था कि रामनाथ के लिए जो बात अच्छी थी वही उसके लिए भी सोलह आने ठीक उतरे, यह असंभव है।

जीवन तो विचित्रता और कौतूहल से भरा होता है। यही उसकी सार्थकता है। उस छोटी-सी गुड़िया ने मुझे पालतू सुग्गा बनाकर अपने पिंजड़े में रख छोड़ा है। मनुष्य का जीवन, उसका शरीर और मन एक कच्चे सूत में बांधकर लटका देने का खेल करना चाहती है, यही खेल बराबर नहीं चल सकता। मैना को लेकर जो कांड अकस्मात् खड़ा हो गया है उसकी वजह से वह आज-कल दिन-रात सोचती है। रूठी हुई शांत-सी, किंतु भीतर-भीतर जैसे वह उबल पड़ने की दशा। बोलती है तो जैसे वाणी हृदय का स्पर्श करने नहीं आती। मैं अपनी सफाई देता हूं, उसकी गांठ खोलना चाहता हूं, किंतु वह तो जैसे भयभीत और चौकन्नी-सी हो गई है। पुरुष को सदैव यदि स्त्री को सहलाते, पचकारते ही बीते तो बहत ही बुरा है। उसे तो उनमुक्त, विकासोन्मुख और स्वतंत्र होना चाहिए। संसार में उसे युद्ध करना है। वह घड़ी-भर मन बहलाने के लिए जिस तरह चाहे रह सकता है। उसके आचरण में, कर्म में नदी की धारा की तरह प्रवाह होना चाहिए। तालाब के बंधे पानी-सा जिसके जीवन का जल सड़ने और सूखने के लिए होगा तो वह भी जड़ और स्पन्दन-विहीन होगा!

अभी-अभी रामजस क्या कह गया है? उसका हृदय कितना स्वतंत्र और उत्साहपूर्ण है। मैं जैसे इस छोटी-सी गृहस्थी के बंधन में बंधा हुआ, बैल की तरह अपने सूखे चारे को चबाकर संतुष्ट रहने में अपने को धन्य समझ रहा हूं। नहीं, अब मैं इस तरह नहीं रह सकता। सचमुच मेरी कायरता थी। चौबे को उसी दिन मुझे इस तरह छोड़ देना नहीं चाहिए था। मैं डर गया था। हां, अभाव! झगड़े के लिए शक्ति, संपत्ति और साहाय्य भी तो चाहिए। यदि यही होता, तब मैं उसे संग्रह करूंगा। पाजी बनूंगा; सब करते क्या हैं। संसार में चारों ओर दुष्टता का साम्राज्य है। मैं अपनी निर्बलता के कारण ही लूट में सम्मिलित नहीं हो सकता। मेरे सामने ही वह मेरे घर में घुसना चाहता था। मेरी दरिद्रता को वह जानता है। और राजो। ओह! मेरा धर्म झूठा है। मैं क्या किसी के सामने सिर उठा सकता हूं। तब...रामजस सत्य कहता है। संसार पाजी है, तो हम अकेले महात्मा बनकर मर जाएंगे।...

मधुबन घर की ओर मुड़ा। वह धीरे-धीरे अपनी झोंपड़ी के सामने आकर खड़ा हुआ। तितली उसकी ओर मुंह किए एक फटा कपड़ा सी रही थी। भीतर राजो-रसोईघर में से बोली-बहू, सरसों का तेल नहीं है। ऐसे गृहस्थी चलती है; आज ही आटा भी पिस जाना चाहिए।

जीजी, देखो मलिया ले आती है कि नहीं।! उससे तो मैंने कह दिया था कि आज जो दाम मटर का मिले उससे तेल लेते आना।

और आटे के लिए क्या किया?

जौ, चना और गेहूं एक में मिलाकर पिसवा लो। जब बाबू साहब को घर की कुछ चिंता नहीं तब तो जो होगा घर में वही न खाएंगे?

कल का बोझ जो जाएगा उसमें अधिक दाम मिलेगा, करंजा सब बिनवा चुकी हूं। बनिए ने मांगा भी है। गेहूं कल मंगवा लूंगी। उनकी बात क्या पूछती हो। तुम्हीं तो मुझसे चिढ़कर उसके लिए मैना को खोज लाई हो, जीजी!—कहती हुई तितली ने हंसी को