बिखराते हुए व्यंग्य किया।
भाड़ में गई मैना! बहू, मुझे यह हंसी अच्छी नहीं लगती। आ तो आज तेरी चोटी बांध दूं।
मधुबन यह बातें सुनकर धीरे-से उल्टे पांव लौटकर बनजरिया के बाहर चला गया। वह मैना की बात सोचने लगा था। कितनी चंचल, हंसमुख और सुंदर है, और मुझे...मानती है। चाहती होगी! उस दिन हजारों के सामने उसने मुझे जब बौर दिया था, तभी उसके मन में कुछ था।
मधुबन को शरीर की यौवन भरी संपत्ति का सहसा दर्प भरा ज्ञान हुआ। स्त्री और मैना-सी मनचली! यह तो...तब इस कूड़ा-करकट में कब तक पड़ा रहूंगा? रामजस ठीक ही कहता था!
न जाने कह, हृदय की भूमि सोंधी होकर वट-बीज-सा बुराई की छोटी-सी बात अपने में जमा लेती है। उसकी जड़ें गहरी और भीतर-भीतर घुसकर अन्य मनोवृत्तियों का रस चूस लेती हैं। दूसरा पौधा आस-पास का निर्बल ही रह जाता है?
मधुबन ने एक दीर्घ निःश्वास लेकर कहा—स्त्री को स्त्री का अवलम्बन मिल गया। तितली, मैना के भय से राजो को पकड़कर उसकी गोद में मुंह छिपाना चाहती है। और राजो, उसकी भी दर्बलता साधारण नहीं। चलो अच्छा हआ एक-दसरे को संभाल लेंगी।
मधुबन हल्के मन से रामजस को खोजने के लिए निकल पड़ा।
तहसीलदार की बैठक में बैठे चौबेजी पान चबाते हुए बोले—फिर संभालते न बनेगा। मैं देख रहा हूं कि तुम अपना भी सिर तुड़वाओगे और गांव-भर पर विपत्ति बुलाओगे। मैं अभी देखता आ रहा हूं रामजस बैठा हुआ अपने उपरवार खेत का जौ उखाड़ कर होला जला रहा था, बहुत-से लड़के उसके आसपास बैठे हैं।
उसका यह साहस नहीं होता यदि और लोग न उकसाते। यह मधुबन का पाजीपन है। मैं उसे बचा रहा हूं, लेकिन देखता हूं कि वह आग में कूदने के लिए कमर कसे है। बड़ा क्रोध आता है, चौबे, मैं भी तो समय देख रहा हूं। बीबी-रानी के नाम से हिस्सेदारी का दाखिलखारिज हो गया है। मुखतारनामा मुझे मिल जाए तो एक बार इन पाजियों को बता दूं कि इसका कैसा फल मिलता है।
वह तो सबसे कहता है कि मेरे टुकड़ों से पला हुआ कुत्ता आज जमींदार का तहसीलदार बन गया। उसको मैं समझता क्या हूं!
पला तो हूं, पर देख लेना कि उससे टुकड़ा न तुड़वाऊं तो मैं तहसीलदार नहीं। मैं भी सब ठीक कर रहा हूं। बनजरिया और शेरकोट पर घमंड हो गया है! सुखदेव! अब क्या यहां इंद्रदेव या श्यामदुलारी फिर आवेंगी? देखना, इन सबको मैं कैसा नाच नचाता हूं।
तहसीलदार के मन में लघुता को—पहले मधुबन के पिता के यहां की हुई नौकरी के कलंक को—धो डालने के लिए बलवती प्रेरणा हुई—यह कल का छोकरा सबसे कहता फिरता है तो उसको भी मालूम हो जाए कि मैं क्या हूं—कुछ विचार करके सुखदेव से कहा—
तुम जाकर एक बार रामजस को समझा दो। नहीं तो अभी उसका उपाय करता हूं। मैं चाहता हूं कि भिड़ना हो तो मधुबन पर ही सीधा वार किया जाए। दूसरों को उसके साथ