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पृष्ठ:तितली.djvu/१२७

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मेरे सुशील मधुबन के ऊपर यह विपत्ति आई। तितली भी चली गई। उसका भी कुछ पता नहीं। सुना है कि कल तक लगान का रुपया न जमा हो जाएगा, तो बनजरिया भी हम लोगों को छोड़ना पड़ेगा। हे भगवान!

वैशाख की संध्या आई। नारंगी के हल्के रंग वाले पश्चिम के आकाश के नीचे, संध्या का प्राकृतिक चित्र मधुर पवन से सजीव हो हिल रहा था। पवन अस्पष्ट गति से चल रही थी। उसमें अभी कुछ-कुछ शीतलता थी! सूर्य की अंतिम किरणें भी डूब चुकी थीं; किंतु राजकुमारी की भावनाओं का अंत नहीं!

सहसा तितली ने पास आकर कहा—मलिया कहां गई? जीजी! क्या तुमने गऊ के ही खाने के लिए इतना-सा बोझ यहां डाल दिया है?

वही दृढ़ स्वर! वही अविचल भाव!

राजो ने चौककर उसकी ओर देखा—तितली! तू आ गई! मधुबन का पता लगा? मुकदमे में क्या हुआ?

कहीं पता नहीं लगा। और न तो उसके बिना आए मुकदमा ही चलता है। तब तक हम लोगों को मुंह सीकर तो रहना नहीं होगा जीजी! जीना तो पड़ेगा ही; जितनी सांसें आनेजाने को हैं, उतनी चल कर ही रहेंगी। फिर यह क्या हो रहा है? कहकर उसने गऊ को हांकते हुए अपनी छोटी-सी गठरी रख दी।

आग लगे ऐसे पेट में। जीकर ही क्या होगा। भगवान मुझे उठा ही लेते, तो क्या कोई उनको अपराध लगता! मैं तो...!

मैं भी तुम्हारी-सी बात सोचकर छुट्टी पा जाती जीजी! पर क्या करूं। मैं वैसा नहीं कर सकती। मुझे तो उनके लौटने के दिन तक जीना पड़ेगा। और जो कुछ वे छोड़ गए हैं, उसे संभालकर उसके सामने रख देना होगा।

तितली की प्रशांत दृढ़ता देखकर राजो झल्ला उठी। वह मन-ही-मन सोचने लगी पढ़ी-लिखी स्त्रियां क्या ऐसी ही होती हैं? इतनी विपत्ति में भी जैसे इसको कुछ दुख नहीं! न जाने इसके मन में क्या है!

मनुष्य इसी तरह प्राय: दूसरे को समझा करता है। उसके पास थोड़ा-सा सत्यांश और उस पर अनमानों का घटाटोप लादकर वह दूसरे के हृदय की ऐसी मिथ्या मूर्ति गढ़कर संसार के सामने उपस्थित करते हुए निस्संकोच भाव से चिल्ला उठता है कि लो यही है वह हृदय, जिसको तुम खोज रहे थे। मूर्ख मानवता!

राजकुमारी ने एक बार और भी किया—तितली! कल लगान का रुपया न जमा होने से बनजरिया भी जाएगी।

तितली ने गठरी खोलकर अपना कड़ा, और भी दो-एक जो अंगूठी-छल्ला था, राजकुमारी के सामने रख दिया।

राजो ने पूछा—यह क्या?

इसको बेचकर रुपये लाओ जीजी। लगान का रुपया देकर जो बचे उससे एक दालान यहीं बनवाना होगा। मैं यहां पर कन्या-पाठशाला चलाऊंगी और खेती के सामान में जो कुछ कमी हो, उसे पूरा करना होगा। गायें बेच दो। आवश्यकता हो तो बैल खरीद लेना। तुम देखो खेती का काम, और मैं पढ़ाई करूंगी। हम लोगों को इस भीषण संसार से तब तक