अनवरी ने भी दूसरी ओर से आकर क्रोध और उदासी से भरे स्वर में कहा-दूसरा कोई उपाय नहीं।
अनवरी का वेग गुम हो गया था, इस पर भी विश्वास करना ही पड़ा। इंद्रदेव को अपने घरेलू संबंध में इस तरह अनवरी का सब जगह बोल देना बहुत दिनों से खटक रहा था। किंतु आज वह सहज ही सीमा को पार कर गया। क्रोध से भरकर प्रतिवाद करने जाकर भी वह रुक गए। उन्होंने देखा कि हानि तो अनवरी की ही हुई है, यहां तो उसे बोलने का नैतिक अधिकार ही है।
रामदीन बुलाया गया। अनवरी पर जो क्रोध था उसे किसी पर निकालना ही चाहिए; और जब दुर्बल प्राणी सामने हो तो हृदय के संतोष के लिए अच्छा अवसर मिल जाता है। रामदीन ने सामने आते ही इंद्रदेव का रूप देखकर रोना आरंभ किया। उठा हुआ थप्पड़ रुक गया। इंद्रदेव ने डांटकर पूछा—क्यों बे, तूने मनीबेग चुरा लिया है?
मैंने नहीं चुराया। मुझे निकालने के लिए डॉक्टर साहब बहुत दिनों से लगी हुई हैं। एं-एं-एं! एक दिन कहती भी थीं कि तुझे पुलिस में भेजे बिना मुझे चैन नहीं। दुहाई सरकार की, मेरा खेत छुड़ाकर मेरी नानी को भूखों मारने की भी धमकी देती थीं।
इंद्रदेव ने कड़ककर कहा—चुप बदमाश! क्या तुमसे उनकी कोई बुराई है जो वह ऐसा करेगी?
मैं जो मेम साहब का काम करता हूं! मलिया भी कहती थी कि बीबी रानी मेम साहब को निकालकर छोड़ेगी और तुमको भी. हूं-हं-ऊं–ऊं!
उसका स्वर तो ऊंचा हुआ, पर बीबी-रानी अपना नाम सुनकर क्षोभ और क्रोध से लाल हो गईं।—सुना न, इस पाजी का हौसला देखिए। यह कितनी झूठी-झूठी बातें भी बना सकता है।—कहकर भी माधुरी रोने-रोने हो रही थी। आगे उसके लिए बोलना असंभव था। बात में सत्यांश था। वह क्रोध न करके अपनी सफाई देने की चेष्टा करने लगी। उसने कहा—बुलाओ तो मलिया को; कोई सुनता है कि नहीं!
इंद्रदेव ने विषय का भीषण आभास पाया। उन्होंने कहा—कोई काम नहीं। इस शैतान को पुलिस में देना ही होगा। मैं अभी भेजता हूं।
रामदीन की नानी दौड़ी आई। उसके रोने-गाने पर भी इंद्रदेव को अपना मत बदलना ठीक न लगा। हां, उन्होंने रामदीन को चुनार के रिफार्मेटरी में भेजने के लिए मजिस्ट्रेट को चिट्ठी लिख दी।
शैला के हटते ही उसका प्रभु-भक्त बाल-सेवक इस तरह निकाला गया!
इंद्रदेव ने देखा कि समस्या जटिल होती जा रही है। उसके मन में एक बार यह विचार आया कि वह यहां से जाकर कहीं पर अपनी बैरिस्टरी की प्रेक्टिस करने लगे। परंतु शैला! अभी तो उसके काम का आरंभ हो रहा है। वह क्या समझेगी। मेरी कायरता पर उसे कितनी लज्जा होगी। और मैं ही क्यों ऐसा करूं। रामदीन के लिए अपना घर तो बिगाडूंगा नहीं। पर यह चाल कब तब चलेगी।
एक छोटे-से घर में साम्राज्य की-सी नीति बरतने में उन्हें बड़ी पीड़ा होने लगी। अधिक न सोचकर वह बाहर घूमने चले गए।
शैला को रामदीन की बात तब मालूम हुई, जब वह मजिस्ट्रेट के इजलास पर पहुंच