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तिलिस्माती मुँदरी


मौसिम गुज़र गया और उसे अपने पेशे में कम कामयाबी होने लगी तो ख़र्च की तकलीफ़ पेश आई। फलों का मौसिम भी ख़तम हो गया था, इससे कौए कोई फल नहीं ला सकते थे। एक रोज़ माहीगीर को एक भी मछली न मिली और घर यों ही लौट आया। उस वक्त घर में सिर्फ़ एक मोटी रोटी का टुकड़ा था। राजा की लड़की और वह उसे खाने को बैठने जाते थे कि दोनों कौए खिड़की की राह उनके पास आ पहुंचे। हर एक की चोंच में एक एक अशर्फी थी जो कि उन्होंने ज़मीन पर रख दी, और फिर राजा की लड़की से उनके पाने का हाल कहने लगे कि “हम दोनों महल के बाग़ में सब तरफ़ चक्कर लगाते फिरे कि कहीं कोई फल बचा हुआ हो तो ले चले और जब थक गये तो सुस्ताने के लिए एक पुरानी चिमनी की चोटी पर जा बैठे। चिमनी की नली चौड़ी और कम नीची थी। उसमें जो झांका तोतले कोई चीज़ चमकती सी नज़र आई। हममें से एक नीचे उतर गया। देखा कि वहां सरकारी खज़ाना है और रुपयों अशर्फीयां और जवाहिरात के चारों तरफ़ गंज लगे हुए हैं। उसने वहां दूसरे को भी बुला लिया और दोनों अपनी चोंच में एक एक अशर्फ़ी लेकर ऊपर उड़ आये और वहां से सीधे यहां आये। बुड्ढा सोने को देख कर बहुत खुश हुआ और कहनेलगा कि यह ज़र असल में राजा की लड़की ही का है क्योंकि अगर राजा को मालूम होता कि मेरी लड़की को ख़र्च की ज़रूरत है तो वह इसका हज़ार गुना ख़ुशी से भेज देता। पस वह अशर्फीयां लेकर फ़ौरन बाहर गया और खाने का सामान और जिन चीज़ों की ज़रूरत थी ख़रीद लाया। जब तक ख़र्च उनके पास रहता वह बड़े आराम से रहते और जब चुक जाता कौए राजा के ख़ज़ाने से और ले आते।