खुद वहां आ पहुंचा, वह अपनी आंखों से देखना चाहता था कि कितने लौंडी गुलाम इकट्ठे किये जा चुके हैं। जब उसने पूछा कि क्या माजरा है तो दारोग़ा ने सब किस्सा सुना दिया। राजा ने जब यह सुना कि कोतवाल की लौंडी छुपा दी गई थी तो बहुत नाराज़ हुआ, और सख़ हुक्म दिया कि जब तक वह लौंडी न मिले कोतवाल की लड़की दयादेई उसके बजाय पकड़ ली जाय और कई सिपाहियों के साथ एक अफ़सर को फौरन राजा की लड़की को तलाश करने के लिये रवाना किया और ताकीद कर दी कि अगर वह न मिले तो दयादेई को पकड़ लावें। हुक्म के मुताबिक़ वह उसी वक्त कोतवाल के मकान पर गये और उसकी और बाग़ की खूब अच्छी तरह तलाशी ली लेकिन राजा की लड़की वहां न मिली। दयादेई और उसकी मां को बड़ा ख़ौफ़ पैदा हुआ कि कहीं राजा की लड़की का मीनार के अन्दर छिपा हुआ होना उन्हें मालूम न हो जावे, लेकिन उनको जल्द मालूम हो गया कि मीनार की तलाशी तो पहले
ही हो चुकी थी और वहां वह नहीं मिली थी। इस बात को जान कर उनका ख़ौफ़ कुछ कम हुआ लेकिन जब उन्हों ने लोहू में सने उसकी चादर के टुकड़े सिपाही के पास देखे उन की फ़िक्र कि उस बेचारी पर न जाने क्या नई आफ़त पड़ी होगी, और ज़ियादा बढ़ गई। लेकिन जब उन से अफ़सर ने कहा कि राजा ने दयादेई को पकड़ ले जाने का हुक्म दिया है उनके दिल की हालत क्या हुई होगी कहा नहीं जा सकता और बावजूद दोनों मां बेटियों के रोने चिल्लाने और मिन्नत करने के दयादेई को वह लौंडी बना कर ले गये। जब वह लौंडीख़ाने के आंगन में हो कर अपनी कोठड़ी में पहुंचाई जा रही थी उस ने वहां उस काली लौंडी को देखा जो
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तिलिस्माती मुँदरी