पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१०४

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राजापुर के तुलसीदास ने अपने पाठ करने के निमित्त राजापुर परगने में जाय को श्री. गोस्वामी जी के वंश की प्रजा वास करती हैं उनको अनेक रुपैये के साध्या और शारीर की सेवा कर को श्री गोस्दामी जी के हाथ की लिखी पोथी सों प्रति अक्षर शोध को पुस्तक अपना तैयार किया था ॥ सोई पोथी सों वर्तमान समय में छापा किया है । और अधिक पाठ और प्रसङ्ग को रहने दिया है इस निमित्त कि सब लोग. तुल्यबुद्धि नदा ने सृष्टि किया नहीं है । कथा निकाल देने.सों हम कॉ. लोग दोषी करते इस हेतु सों ॥ तथा क्षेपक दोहा सोरठा चौपाई छन्द जो सच्चे दोहा चौपाई के साथ मिल रहे थे उसको जानने के निमिर अयोध्याकाण्ड पर्यंत स्पष्ट लिख दिया है तिसको सङ्केत यथा. इहा सो प्रसङ्ग के शेप में इहा ताई क्षेपक है ऐसा लिखा है आगे आरण्यकाण्ड सों क्षेपक दोहा चौपाई के आय. ०० और अंत मे .. यह चिन्ह दिया है तिस सों आप लोग विवेचना कर लेना और यह ग्रन्थ के मर्म जाननेवाले साधु सो हमारा विनय है कि प्राचीन पाठ मे हमारी भूल होय सो लिख को भेज दें तो हम यहुत मासानवन्त होवेंगे। और जो श्रम हमने यह पोथी शोधनेके निमित किया है सो व्यर्थ न जाय । इस निमित जो कोई इस पोधी को देख को दूसरी पोथी छापेंगे. उसको यह पोथी छापने में औ आदर्श की पोथी निकालने में जो खरच पड़ा है सो देना होगा ॥ अच्छा होगा यहीं इतना और जान लेना भी कि उक्त पोथी के मुखपृष्ट के अंत में लिखा है-- श्री तिलकराम नाथराम भगत ने छपवाया सम्वत् १८९६ मिती श्रावण कृष्ण ५ बुध वार सन १२४६ साज१५ श्रावण :