पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/११२

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राजापुर के तुलसीदास १०१ मंदिर में श्री तुलसीदास की 'भूति' के रूप में विराजमान हैं। किंतु यह तो कल की पातं ठहरी । आज तो 'नागा' लोगों का 'लकरी'-कांड सामने है न ? सो ये नागा लोग यदि गोसांई अनूप गिरि किंवा.. राजा हिम्मतबहादुर के वर्ग के हों तो इसमें आश्चर्य क्या ? राजापुर के तुलसीदास का पता अँगरेजी शासन के पहले इस जन को कहीं नहीं मिला। और तो और, भवानीदास ने भी कहीं राजापुर का संकेत नहीं किया । हाँ, एक स्थान का निर्देश उसमें अवश्य है जो यमुना तट पर चित्रकूट से दिल्ली की यात्रा में पड़ा था। किंतु उसकी संगति स्यात् , 'तिकवाँ' से ठीक बैठती है। कारण कि उसके उपसंहार में कहा गया है-- देखि सांचिली प्रीति को, अमित अनुग्रह कीन्ह । प्रतिमा राधे वल्लमहि, लखि उपासना दीन ।। [चरित्र, पृष्ठ ७३ ] और इस 'अमित अनुग्रह' का पात्र था- जमुना तट वासी नृप सुखरासी आगे आयौ लेना। आदर वहु कीन्हो अति लै लीन्हो कहत दीन है बैना । [वही, पृष्ठ ७२] हमारी समझ में इसका मेल भूषण के इस कथन से आप ही हो जाता है- द्विन कन्नौन : कुल कस्यपी रतनाकर सुतधीर । ..: बसत त्रिविक्रमपुर सदा तरनि तनूना तीर ।। २६ ।। वीर.बीरवल से नहाँ उपजे कवि अरु भूए ।

देव बिहारीश्वर जहाँ विश्वेश्वर : तद्रूप ॥ २७ ॥

शिवराज-भूषण, पृ०८] .