पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/११३

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१०२ तुलसी की जीवन-भूमि निदान राजापुर का यहाँ संकेत नहीं । कहाँ है, कोई कह तो दे कि उक्त चदे (सं० १८८४) के पहले का राजापुर-माहात्म्य क्या है और क्या है उसमें योग किसी राजा-महाराजा वा सेठ- साहूकार का । अभी तो राजापुर' की प्राचीनता ही संदिग्ध है। सरकारी घष्टि से तो तुलसीदास के नन्म के समय 'राजापुर' की सत्ता ही न थी। ध्यान दीजिए । वाँदा गजेटियर की कही वात है कुछ और ही। अनुवाद डा० माताप्रसाद गुप्त का है इस प्रकार- कहा जाता है कि अकबर के शासन काल में (सं० १६१३ से १६६२ तक) एक संत, जिसका नाम तुलसीदास था, और जो सोरों, तहसील कासगंज, जिला एटा का निवासी था, यमुना-तट के उस जंगल में पाया जहाँ इस समय राजापुर आवाद है, और वहाँ पर इंश्वर-प्रार्थना और ईश्वर ध्यान में दत्तचित्त रहने लगा। उसके पुनीत आचरण से प्रभावित होकर अनेक उसके अनुयायी हो गए, जो उसके समीप रहने लगे, और जब उनकी संख्या और बढ़ी के व्यापार और धर्माचरण में लगे । [ये वे ही तुलसीदास थे जिन्होंने 'रामायण' की रचना की, और कस्बे में उनका मकान अब भी दिखाया जाता है। यह वस्तुतः एक कच्ची इमारत थी, किंतु अब पुनर्निर्मित हुई है और इसमें एक स्मारक और एक किंचित् संदित प्रति 'रामायण' की है। स्मारक के साथ थोड़ी सी मुआफी प्राप्त है, किंतु इस समय के मुआफी- दार अनपढ़ और मागड़ालू हैं, और आदरणीय कवि की धार्मिक पवित्रता सया उदारता की उन भावनानों को प्रसार देने के लिए कोई प्रयत्न नहीं करते हैं जिनका उपदेश कवि किया करता था। उक्त स्मारक में एक प्रस्तर मूर्ति भी है, जो कवि की मूर्ति कही जाती है, और जिसकी उत्पति दिव्य बताई जाती है, और यह कहा जाता है कि यह मूर्ति राजापुर के निकट बाल में गड़ी हुई प्राप्त हुई थी। स्थानीय जनश्रुति