पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१२८

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तुलसी का जन्मस्थान कारण एक यह भी है कि द्वितीय पुष्पिका में नाम आया है किसी 'गोसाई रहित 'रामदुवेद' का । यद्यपि प्रथम का समय सं० १६९९ वि० तथा द्वितीय का सं० १८१९ वि० कहा गया है तथापि उनका यह नाम साम्य विचारणीय है। और नहीं तो इस गोसाई नाते सही। 'राजापुर के इस घरेलू प्रमाण का प्रतिवित्र जव तक यथातथ्य प्रकाश में नहीं आ जाता तब तक हम इन पुष्पिकाओं का दर्शन पुण्य नहीं समझते और खरे रूप में स्पष्ट विक्रमपुर का महत्व कह देना चाहते हैं कि अतीत के अध्ययन में इनकी बाढ़ को रोकने का उपाय होना चाहिए । अन्यथा भाविष्य में इनसे और भी अनर्थ की आशंका है। राजापुर जैसे स्थान में जव 'सहस्रों हस्तलिखित कर्मकांड की पोथियाँ दुवों की लिखी हुई हैं तब समझ लीजिए कि निश्चय ही वहाँ 'ज्ञान' को स्थान नहीं। कारण कि किसी की 'पुष्पिका में अभी राजापुर का नाम नहीं मिला। 'राजापुर और 'विक्रम . पुर' का तो.साथ-साथ कहीं मिला ही नहीं। यमुना के दक्षिण. तट पर क्या एकमात्र राजापुर ही वसा है जो उसी को विक्रमपुर मान लें? सचमुच 'राजापुर' को तुलसीदास का जन्म स्थान सिद्ध अनुपम सूझ करने की अनुपम सूझ है यह- -यों तो तुलसीदास जी ने अपने निवासस्थानादि के विषय कहीं एक शब्द भी नहीं लिखा है, परंतु मानस के उत्तरकांड के अयोध्या- वर्णन से ऐसा भाभास होता है, मानों, महाकवि अपनी जन्मभूमि - राजापुर की एक झलक सांकेतिक भाषा में दे. रहा हो, क्योंकि इस वर्णन में दोनों स्थानों के ढंग तथा प्रथा आदि. पूर्ण साम्य है। यथा- . .