पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१३१

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१२० तुलसी फी जीवन-भूमि मित्रों का कहना यह है यह सब कुछ 'राजापुर' की भूमि में एकतापस घट रहा है। कारण यह है कि- तेहि अवसर भेक तापतु आया । तेज पुंज लघु बयसु नुहाया । कवि अलपित गति वेषु.विरागी। मन क्रम बचन राम अनुरागी । सजल नयन तन पुलफि निज इष्ट देउ पहिचानि ! परेउ दंड निमि घरनि तल दसा नजाइ खानि ॥११॥ राम सप्रेम पुलफि उर लावा । परम रंक ननु पारतु पावा। मनहुँ प्रेम परमारयु दोऊ । मिलत धरै तनु फह सब फोऊ । बहुरि लखन पायन्ह सोइ लागा । लीन्द उठाइ उमगि अनुरागा। पुनि सिय चरन धूरि परि सीसा । जननि जानि सितु दीन्हि असीसा । फीन्द निपाद दंडवत तेही । मिलेउ मुदित लखि राम सनेही । पित नयन पुट रूपु पियूखा । मुदित मुझसनु पाइ जिमि भूखा । 'तापस' को इसी दशा में छोड़ देखिए यह कि- ते पितु मातु कहहु सखि कैसे | जिन्ह पठए वन बालक ऐसे। राम लखन सिय रूपु निहारी । होहिं सनेह विफल नर नारी ! तो क्या इन वालकों में इस 'लघुवयस तापस' की गणना नहीं हो सकती.? हो वा न हो, होता यह है कि- तब रघुबीर, अनेक विधि सखहि सिखावनु दीन्ह । राम रजायसु सीस धरि भवन गवनु तेइ फीन्द ॥११॥ [रामचरितमानस, द्वि० सो०] 'तापस' का आना ही 'सखा' के जाने का कारण हुआ, ऐसा इस जन का मत है। कारण यह कि उसने तो पहले कभी संकल्प किया था- नाथ साथ रहि पंथु देखाई । फरि दिन चारि चरन सेवफाई। जेहि वन नाइ रहब रघुराई । परनकुटी मैं करबि सुहाई। तब मोहि कहँ जसि देवि रजाई । सोइ फरिहों रघुवीर दोहाई।