पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१३९

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१२८ गुलमी की जीवन-भूमि न जाने कहाँ ते आई, फोन फी फोही। अर्थात् वह उक्त प्रदेश की न थी। हाँ, फही पाहर से उस अवसर पर टपक पड़ी थी। तो फिर 'तापस' को ही क्यों उस प्रदेश का मान लें और क्यों न दोनों को ही एक साथ ही 'तुलसी' मान लें तुलसी के इस रूप की चर्चा घुछ अन्यत्र भी हो चुकी है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने 'अवध' के विषय में जो उद्गार प्रकट किए हैं उनमें कुछ उनका अपना भी जन्मभूमि फा निर्देश हो तो इसमें श्राश्चर्य क्या ? तुलसी का विश्वास है- राम - राज भट कामधेनु महि मुख संपदा लोफ छाए । जनम जनम जानकीनाथ के गुनगन तुलगिदास गाए ॥२३॥ [गीतायली, लंफा फांट] किंतु इस जन्म में तुलसीदास का जन्म कहाँ हुआ? क्या तुलसीदास जी कहीं कुछ भी इसका संकेत नहीं फरते ? हमारी धारणा है कि घात ऐसी है नहीं। हमारी समझ में तो तुलसीदास अपनी रचनाओं में जहाँ तहाँ इसका निर्देश करते रहते हैं। यह प्रसंग जाने कोउ फोऊ की व्यंजना कहाँ तक फैलती है, इसे कौन कहे, पर इतना तो प्रायः सबको विदित ही है कि 'जन्मभूमि' की यह ममता तुलसी की अपनी नहीं । हाँ, इसमें अपनी जन्मभूमि की ममता हो तो ठीक ही है। कारण कि 'सूरदास' के राम भी तो प्रायः इसी अवसर पर यही कहते दिखाई देते हैं। देखिए न उनके राम का बखान है- हमारी जन्मभूमि यह गाउँ। सुनहु सखा सुग्रीव - विभीपन, अवनि अयोध्या नाउँ। -