पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१४६

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१३६ तुलसी की जीवन-भूमि 'तुलसी' को इस आशा के विषय में कुछ न कह प्रसंगवश इतना निवेदन कर देना है कि न जाने अवध-संबंध क्या समझ कर कभी भवानीदास ने भी लिखा था- तहाँ ते चलि आए बहुरि, खैराबाद सुजान । सफल सराहै भाग निज, करि आदर सनमान || ४ ।। मिलि तह साध सहेत फरि, दीन वचन बहु भाखि । लीन प्रेम है अति सुफल, माथ चरन तर राखि ॥ ५ ॥ दै करि आसिरबाद तिन, साए घाघर तीर । जानि अवध सनबंध जिय, नैनन्ह आयौ नीर ॥ ६ ॥ [चरित्र, पृष्ठ १०६-७] अन्तिम पंक्ति कुछ कहा चाहती है। 'अवध-संबंध' की जान कारी क्या ? तो भी आगे का लेख है- अथ रामपुर प्रसंग दोहा । 'रामपुर से तुलसी का लगाव क्या ? कौन कहे ? किंतु कहाँ वहीं उसी के आगे कहा यह गया है कि- अवध रूप छायो द्विगन, उमग्यौ प्रेम अपार । मगन ध्यान रस दंड युग, दसा सरीर विसारि ॥ १ ॥ पूजि बिबिध करि आरती, अतिहीं प्रम अधीर । वस्तु भावना भवन भरि, चले नगर रघुबीर ॥ २ ॥ [वही, पृष्ठ १०७] तो फिर इस 'वस्तु भावना भवन भरि' का रहस्य क्या ? 'चले नगर रघुवीर' तो प्रत्यक्ष ही है। कारण कि यहीं कह दिया गया है-