पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३८ 1 तुलसी की जीवन-भूमि ख्याल बहरे शिफरत अवध की भूमी पवित्र सब है, पवित्र तम उसमें है तुलसी चीरा । . तवात करते हैं रोज निसफा, विरंचि नारद, महेश गौरा ॥१॥ वह घड़ी भजन थी कि जिस घड़ी वह दरख्त बट का उगा यहाँ। उसी शव में बढ़ के बुलंद शुद, उसे कैसे कोई फरे चयाँ। हैराँ हुए सब देख कर कुदरत इलाही दर जहाँ । न खुला मुअम्मा किसी से भी पोशीदा इसरारे निहाँ। सुना न देखा किसी ने पहले बना दिया इसने सब को बौरा ॥२॥ अवध की भूमी... जमाया आसन उसी के नीचे, प्रसिद्ध मुनि योगिराज जी ने। वे जानते मर्म भीतरी थे, बता दिया था उन्हें किसी ने ।

यहाँ पै काशी से जब गुशाई,

पधारे श्री राम-रस सुना के आदेश अपने गुर का, उन्हे ही सौंपा सब उस यती ने । जला के तन योग अग्नि में तब, सिधारा गुर पाद पन भौंरा ॥३॥ अवध की भूमी... भीने ।