पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१६५

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१६२ तुलसी की जीवन-भूमि साहिब सुजान जिन स्वान हू को पच्छ कियो रामबोला नाम, हौं गुलाम राम-साहि को ॥१०॥ [कवितावली, उत्तर ] "राम-साहि को गुलाम' 'गमबोला' कभी किसी 'कराल कलि- काल भूमिपाल' का सेवक हो सकता है ? न हो, परंतु फिर इस "अकस' से उसे चिढ़ क्यों ? इसका सामना तो उसे करना ही होगा और इसका फल भी उसे भोगना ही ! तो इसकी उसे चिंता नहीं। हाँ, दुःख तो उसे इस बात का है- बचन विकार, करतबऊ खुमार, मन विगत-विचार, कलि मल को निधान है। राम को कहाइ, नाम बेंचि बैंचि खाइ, सेवा संगति न जाइ, पाछिले को उपखानु है । तेहू तुलसी को लोग भलो भलो कहें, ताको दूसरो न हेतु, एक नीके के निदान है । लोफरीति विदित विलोकियत जहाँ तहाँ स्वामी को सनेह खान हू को सनमानु है ||६४॥ [कविता०, उत्तर] पाछिले को उपखानु है' का निर्देश क्या है ? 'उपखान' का अर्थ 'कहावत' कर इसका अर्थ लगाना ठीक नहीं जंचता। हमारी समझ में इसका संकेत तुलसी-जीवन की बीती, बात... 'पिछली कथा' से है जब जन्मजात शिशु के रूप में उन्हें राम के स्थान से मोहवश अलग कर दिया गया । जो हो, तुलसी का ही यह भी वचन है- जीजै न ठाउँ, न आपन गाउँ, सुरालय हू को न संबल मेरे । नाम रौं, जमवास क्यों. जाउँ, को आइ सकै जम-किंकर नेरे ।