पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१७३

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7274.: * 1er १७०. तुलसी की जीवन-भूमि तुलसी का 'अकस' कैसा ? क्यों का समाधान स्यात् यही हो जाय। परिस्थिति पुकार कर कहती है- अफगानों का विद्रोह--सबसे पहले हुमायूँ ने कालिंजर के हिंदू राजा पर आक्रमण किया। कालिंजर का राजा अफगानों का मित्र था । इसी बीच में पूरय में अफगानों का विद्रोह आरंभ हो गया। हुमायूँ ने कालिंजर का घेरा उठा लिया और राजा बहुत सा रुपया भेंटस्वरूप लेकर अफगानों का दमन करने के लिए पूरय को ओर यहा। सुलतान महमूद लोदी अफगानों का नेतृत्व कर रहा था। दौरा की लड़ाई में उनकी हार हुई, और महमूद बंगाल की ओर भाग गया। इसके उपरान्त हुमायूँ ने चुनार के किले का घेरा डाला । चुनार इस समय शेरखाँ के हाथ में था ! शेरखाँ ने दिखाने को हुमायूँ की अधीनता स्वीकार कर ली। हुमायूँ उसकी बातों में पा गया और विना चुनार को पूर्ण विजय किए हुए आगर की ओर लौटा। शीघ्र ही उसे गुजरात के सुलतान बहादुरशाह को बढ़ती हुई शक्ति को रोकने के लिए पश्चिम की ओर प्रस्थान करना पड़ा। हुमायूँ और बहादुरशाह-वहादुरशाह ने हुमायूँ के शत्रु अफ- गान सरदारों को शरण दी थी। गुजरात के पड़ोसी राज्यों की शक्ति क्षीण हो चुकी थी। मेवाड़ में राणा साँगा के बाद कोई प्रभावशाली व्यक्ति नहीं हुआ। वहादुरशाह ने मालवा को अपने राज्य में मिला लिया और चित्तौड़ पर आक्रमण किया। विक्रमाजीत इस समय मेवाड़ का राणा था। वह गुजरात-सुलतान का मुकाबला न कर सका। १५३५ में जब हुमायूं मालवा पहुंचा, बहादुरशाह चित्तौड़ का घेरा डाले हुए था। चित्तौड़ की रानी कर्णवती ने उसके विरुद्ध हुमायूँ की सहायता माँगी, किंतु हुमायूँ ने एक मुसलमान के खिलाफ हिंदू राज्य की सहायता करना उचित न समझा। अहादुरशाह ने चितौड़ को जीत