पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२४

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श्री साई चरित्र का महत्व संत' वा 'गुरुजन' के 'अपमान' का फल मिला 'राज्ञी' वा 'बेगम' से कवि गंग को । यही तो इसका भाव है. ?. अच्छा तो इसका आधार है- पढ़यो : गुन्यो कीर न कुलीन हुतो हंस कुल, छुयो गीध .छुति हातो छाती छापे किए तो। तात्यो अजामेल हू से परम मलीन पापी, सदा को तुरापी घरनोदक न पिए तो। गंगु कहे तारि केते. पास में मुक्त कियो, कालीनांग कहाँ ते तिलक मुद्रा दिए तो। दौरें हरि लोग ते हकार एक पायक यों, हाथी कहा हाथ तुलसी की माला लिए तो ॥८॥ 'तुलसी की माला' की फबती हाथ लगी तो हाथी का दंड विधान भी स्यात् यहीं खुल जाता है। कवि गंग के 'नूर' को समझ तो लीजिए। कहते हैं- कुपात्र की प्रीति हूं कहा खादि चिन खेत जैसे, मीति बिन मित्र वाकू चितहून मानिये । मति बिना मर्द और नूर बिन नारी कहा, अर्थ बिना कवि वा. पशु ज्यों प्रमानिये । तोपें बिना फौज कहाँ हस्ती बिन हौदा जैसे, द्रव्य बिन देवे दान देव कर मानिये । कहै कवि गंग सुनो साहिन के साहि सूरा, आदमी को तोल एफ बोल में पिछानिये ॥ ९५ ॥ [अकबरी दरबार पृ० ४३१ तथा ४३३ से उद्धृत ] शाहंशाह सुरांशी जहाँगीर को "मति बिना मर्द की वात भले ही न लगी हो पर सजग नूरजहाँ पर 'नूर बिन नारी कहा'