पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/३५

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तुलसी की जीवन-भूमि प्रसव समझना चाहिए । देश में जो 'शम राज' स्थापित न हो सका वह 'मानस' में स्थापित हो गया और अपनी सुखद छाया में सवको सुखी धनाता रहा । स्मरण है न ? रामजीवन की अंतिम ज्ञाँकी है- गए जहाँ सीतल अँबराई। गोस्वामी तुलसीदास के जीवन को समझने में जो भूल हुई है उसका मुख्य कारण है इस 'चरित्र' को भुला देना । 'पूरब से गोस्वामी जी का जो नाता रहा है उसकी भवानीदास सच्ची जानकारी के बिना गोस्वामी जी का उद्धार हो नहीं सकता। निश्चय ही अब वह समय आ गया है जब हम तुलसी को तुलसी बनाने जा रहे हैं और भावना अथवा अँगरेजी शासन के संस्कारवश कुछ अद्भुत करने जा रहे हैं । हमारा वह अद्भुत कुछ और न बन जाय इसी हेतु जताया यह जाता है कि वास्तव में यह 'चरित्र उपेक्षा का पात्र नहीं, तुलसी-जीवन की कुंजी है। और हो भी क्यों नहीं जब इसका रचयिता ही भवानीदास हैं। लीजिए उसका परिचय है- गिरिजा "अखिल ब्रह्मांड सिरजा जिन्हों धिरजा दीजिए। चरनारबिंद . मकुंद सुचि मफरंद अलि मोहि कीजिए। तव नाथ गाथ उदार अति सो मातु सब तुव हाथ है। सुर नर असुर श्रुति सुजस गावत सुनत नावत माय है। सब गुन रहित अवगुन सहित तव चरण दृढ़ विश्वास हो । धरिः आसः संज्ञा नाम को जाचे भवानीदास हो। झूठेहु फुर निज दास की पति लाज फरि आयो सबै। निज. दिसि निहारि पुरारि प्रिय रखि लीजिए अजहूँ अत्रै 11 [चरित्र, पृष्ठ २-३]