पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/४१

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२४ . तुलसी की जीवन-भूमि फयौ हृदैराम को ग्राम- यह. नाम रामपुर बिस्व भन । छची नाति तन तदपि है. रामदास मम नाम जन ॥ तब निज मन अनुमान किय, अब ऐसे तुम ठोर । आवै वस्तु जो काम तो, 'हमहि ने चाहिय और ।। वस्तु अनेक अमोल भति, अरु बहु जिनिस तुदेस । सब छाड़े ज्यौ भेट किय, साध नरेस घनेस ।। तब हरखि गोसाई बिनै सुनाई अब मोहि अशा दीजै । मम भाग बड़ाई वतु भाव जो अंगीकार फरीजे ॥ हाको जलजाना चले सुजाना जोबन भरि जब आए । मुनि ग्रामपती यह बरनि विविध पुनि नौका चढ़ि चढ़ि आए । बहु सीघ्र - चलाई पहुँचे आई सादर सीस नवाए । फरि बहु मनुहारी बिनैनुसारी नाथ न बाहु बढ़ाए ॥ अब परिश्रम फीजै जग जसु लीजै पाचन भवन फरीजै । हम सुकृत न छीजे सोइ फरना करि पदवी दायन दीजै ॥ बिनती बहु ठानी नेकु न मानी तब फीन्ही वरिभाई । सन्न भये उतारे. भागन भारे. नौका बैंचि चलाई ॥ यहि विधि लै :आए अति सुख पाए अस्तुति बहु विधि लाई। अति आरति फरि करि आनंद.मरि भरि दियो वास सुखदाई॥ सेवा राम कीन्हें अति लव लीने ब्रह्माहि के रस मीने । गुन भाव सु-ग्राही प्रेमहि चाही मानि सबै विधि लीन्हे । तब कै प्रसंन्य तह वास कियौ । अभिलाखिन दरस हुलास दियो । बहु भनन उपाई रचे बिरचे । चख धारन के सुख साज सचे। सब लोक बिसोक सनाथ किए । बहु-संपति अभिमत दान दिए । मथुरा नाम हुतो एक खेरो । मानो सर्वस जस गुन धेरो। .