पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/७

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ज्योति आ गई तो हम अपने अतीत को उनके चश्मे से क्यों देखें ? स्वतंत्र हो कर स्वबुद्धि का परिचय क्यों न दें और क्यों न तुलसी का परिशीलन परंपरा के साथ करें ?

कहने की आवश्यकता नहीं कि तुलसी के जीवन- वृत्त का जो विवाद उठा है वह किसी पुराने पोथी-पने के कारण नदी । पोथी-पत्रों का उदय तो पोपण के हेतु हुआ है। कौन नहीं जानता कि सरकारी फागद-पत्र ही तुलसी को फहीं का नहीं ठहराते और किसी भी स्थान को तुलसी फा जन्म-स्थान होकर नहीं रहने देते? फिर भी कितने प्राणी हैं इस देवा में जो सचमुच इस ग्रंथि को समझना और समझाना चाहते हैं? न हो। परंतु हमारा नम्र निवेदन है कि अब उधार पांडित्य के दिन गए। अब तो अपनी स्वतंत्र मेया से फाम लेना है न ? यहाँ और कुछ नहीं, घंस इसी मेधा से फाम भर लिया गया है और इसकी छाया में प्रत्यक्ष भर किया गया है कि वस्तुतः तुलसी फी वाणी में तुलसी की जीवन- भूमि' क्या है। प्रमाण तुलसी से दिये गए है अतीत के आँगन में। जहाँ तक अपना अध्ययन साथ देता है उसके आधार पर यह सरलता से कहा जा सकता है कि सबसे पहले श्री फ्रांसिस बुफानन ने नुलसीदास का परिचय अँगरेजी दुनिया को दिया और उनको काशी का सारस्वत ब्राह्मण बताया। 'पूर्णिया' की पड़ताल में उनको जो पता लगा उसको उसके विवरण में अंफित फर दिया। उनके पश्चात् श्री विलसन महोदय ने जो कुछ लिखा वह प्रचार में नितना आया उतना विचार में नहीं। अँगरेजी भाव-धारा को टीफ से समझने के विचार से जो उद्योग किया गया है वह फहाँ तक ठीक है इसकी जानकारी अँग- रेजी के जानकार परिशिष्ट' को पढ़ कर स्वयं कर सकते हैं। नागरी के भक्तों के लिए उसका निचोड़ भर दिया गया है 1 यह एक विलक्षण बात है कि 'मुगल' के यहाँ कहीं 'तुलसी' का उल्लेख नहीं । तुलसी के प्रति 'फारसी' का यह भाव समझ में नहीं