पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/७२

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तुलसी का सूफरखेत स्नान करने जाते हैं. और मेला लगता है।" स्व०, डा० श्यामसुन्दरदास ने भी शुक्ल जी की हाँ में हाँ मिलाई । इतना ही नहीं अपितु उपसंहार के रूप में इतना और भी- संभ्रांत इतने भ्रांत ! स्व. लाला सीताराम ने सोरों की ओर इशारा नहीं किया बल्कि इशारा किया सरयू घाघरा- संगम की भोर । लाला जी से पहले सूकरखेत का अर्थ सोरों ही किया जाता था जैसा कि पाउस आदि के लेखों से स्पष्ट है। अपनी कल्पनाओं का तथ्य पर आरोप कर देना तो शुक्ल 'जी-सा योग्य व्यक्ति ही कर सकता है। [ तुलसी का घर-बार, पृष्ठ २५६-७] जी। 'लाला जी से पहले सूकरखेत का अर्थ सोरों ही किया जाता था' यह सोरों के धुरीण शोधक श्रीरामदत्त भारद्वाज जी का मत है। रही प्रमाण की बात । सो साहिबी सूकरखेत उसे भी यही लख लें तो और भी अच्छा । तो इसी के आगे ही तो आपका निवेदन है-- जैसा कि पाउस आदि के लेखों से स्पष्ट है। हो सकता है। परंतु इस 'श्रादि' की व्याख्या हो जाती तो तुलसी का परम कल्याण हो जाता। हाँ, हम जानते हैं कि आप राजापुर की अनुश्रुति का सहारा ले इसे कुछ और पीछे ले जाना चाहते हैं और कह सकते हैं कि सन् १८७४ ई० में भी 'सोरों' का उल्लेख हुआ था। किंतु स्मरण रहे कि वहाँ 'सूकरखेत' का नाम नहीं। तो तुलसी के नाते आप उसे सूकरखेत समझते हैं न ? ठीक । मनुश्रुति राजापुर की है अतः हम राजापुर के प्रसंग में उसकी जाँच करेंगे। अभी तो 'सोरों के प्रेमियों से हमें इतना भर जानना है कि 'एटा' के गजेटियर में कहीं 'तुलसी' का नाम