पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१०

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प्रास्ताविक
 

प्रयत्न किसका था, इसका उल्लेख किये बिना नही रहा जा सकता। चिरम्मरणीय वहन जायजी पेटिट की यह कोशिश थी। इस लड़ाई में भी केवल सत्याग्रह की तैयारी से विजय प्राप्त हुई। परन्तु यह फर्क याद रखने लायक है कि उसके सम्बन्ध में लोगों की ओर से हलचल करने की जरूरत थी। गिरमिट-प्रथा की वन्दी विरमगाम की चुंगी से अधिक महत्त्वपूर्ण है। रौलट एक्ट के बाद लॉर्ड चेम्सफर्ड ने भूलें करने में कसर नहीं की। तो भी मेरा अभी तक यह खयाल है कि वे एक समझटार वाइसराय थे। सिविल सर्विस के स्थायी हाकिमो के पंजे से अन्त तक कौन वायसराय बच सकता है?

तीसरी लड़ाई थी चम्पारन की। उसका सविस्तर इतिहास राजेन्द्रबाबू ने लिखा है। इसमें सत्याग्रह करना पड़ा था। केवल वैयारी काफी नहीं थी। परंतु प्रतिपक्षियों का स्वार्थ उसमें कितना था। चंपारन में लोगों ने जो शान्ति कायम रखी, यह बात उल्लेखनीय है। तमाम नेताओं ने तन, मन और वचन से पूर्ण शान्ति का पालन किया था। मैं खुद इसका साक्षी हूँ। इसीसे वह सदियो की बुराई छ: महीने में दूर हो गयी।

चौथी लड़ाई यो अहमदाबाद के मिल-मजदूरो की। उसका इतिहास तो गुजरात को अच्छी तरह मालूम है। मजदूरों ने कैसी शान्ति रखी थी और नेताओं की शाति के विषय में तो कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं। इस विजय को मैं दोषपूर्ण मानता हूॅ, क्योकि मजदूरों की टेक रखने के लिए मैंने जो उपचास किया था उससे मिल-मालिकों पर दवाब पड़ा था। मेरे और उनके बीच जो स्नेह-भाव था, उससे उनपर मेरे उपवास का असर पड़े बिना नहीं रह सकता था। यह होते हुए भी लड़ाई का सार तो स्पष्ट है। मजदूर यदि शान्ति पर दृढ़ रहें, तो उनकी