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भारतीयों ने क्या किया !
बाले सज्जन सर विलियम विल्सन इंटर थे। वेटाइम्स के भारतीय विभाग के संपादक थे। इनके पास ज्योंद्दी पहला पत्न पहुँचा
त्योंही उन्होंने उसमें दक्षिण अफ्रीका को स्थिति को यथार्थ रत-
रूप मेंजनता के सामने रख दिया। जहाँ-जहाँ उवित मालूम
हुआ वहाँ-चहाँ उन्होंने खानगी पत्र भी किखे। अगर कोई महत्व-
पुर प्रश्न छिड़ जाता तो इनकी डाक घरोबर नियम से हर सप्ताह आती । अपने पहले ही पत्र भेंउन्होंने लिखा था--“आपएने वहाँ
की स्थिति का जो ह्वात्ल लिखा है उसे पढ़कर में दुःखित हूँ । आप अपना काम निःसन्देह विनय-पूवेक, शान्ति केसाथ और
संयम से लेरहे हैं। इस प्रश्न मेंमेंपूरी तरह से आपके साथ हूँ। और न्याय प्राप्त करने के लिए मुझसे जो कुछ वन पड़ेगा सर्व
करना चाहता हूँ। मुके तोनिश्चय है किइस विषय मेंहम एक
'इैचमर भी पीछे पेर नहीं रख सकते। आपकी माँग तो ऐसी हैकि कोई भी निष्पक्ष मनुष्य उसमें तिलमान्न रद्दो-अदल्न नहीं कर सकता |” फरीब-करीब यही शब्द उन्होंने “टाइम्स” के अपने पहले लेख मेंलिखे थे, और आखिर तक उसी बात पर कायम रहे । लेडी हटर ने अपने एक पत्र में लिखा था कि जब उनकी मृत्यु कासमय आया तब उत्त दिनों में भो उन्होंने भार-
तीयों के प्रश्न परएक लेखमाज्ना लिखने के लिए एक ढाँचा
तैयार कर रखा था | मनसुखल्ञाज़ नाजर का नाम पिछले प्रकरण में जिख चुका
हुँ। इग्लेन्ड के खास-खास लोगों को दक्षिण अफ्रीका का प्रश्न अधिक भ्रच्छी तरद सममाने फे लिए उन्हें विज्ञायत भेजा गया
४ था। वहाँ उन्हें यह भी लिख भेजा था कि तमाम पत्तों को अपने साथ में लेकर वे वहाँ काम करें। जब तक वेवहाँ रहेंसर विलि-
यप्विल्सन हन्टर और सर संचेरली भावनगरों और मिटिश