पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दह्िण अफ्रीका का इतिहाठ

(४

मेंकेवघनलइकट्ठाकरनेकेलिएआते हैं। दे अंग्रेजों केतिए कपनभारेकपहैऔर जिस तरह दोमक लकड़ी को इुतर

कर विल्कुल पोत्ा फरछाती है, दीक उसी दरद ये लोग हमारा कलेजा खानेकेलिएआये हुएहैं।मुल्ककेऊपर के क्षोई संकटआवे--घर-वार लुट जाने का प्रसंग आवे तो हमारे किसी काम में आनेवाले नहीं। हमें न केवल शत्रुओं से अपनी रक्षा करनी होगी धल्कि इनको चचांता भी होगा। इस आरोप पर हस तमाम भारतीयों ने विचार किया।

सबको यही मालूम हुआ कि उसआदोप को मिथ्या सिद्धकरे

दिखाने के लिए थद्दी सबसे बढ़िया अवसर है, पर साथ ही इमें नीचे लिखी वा्तों पर मी विचार करना पढ़ा !

हमें तो क्या अंग्रेज और क्या चोआर दोनों एक-सा देखते हैं।यहनहींकिट्रान्सदाल्षमेंतोदुःख है और नेटाल-केपमें नहीं। अगरकोईपक्केहैतोबहुतथोढ़ा| फिरहम तो गुल्ञाम के समानमानेजातेहैं!हम जानते हैंकि यह मुट्टीमर बोभर

जातिअपनेघरितलकेलिए लड़ रही है; फिर हम उसके विनाश में सह्दायक क्योंकर हो | फ़िर व्यवह्ारिक दृष्टि से देखा जायदोभी यद्द निश्चितर सेुप नहींकहा ल्ञा सकवा

की हो द्वार शोगी। अगर उन्तकी विजय हुई तो कया किवेबोधरों हमसे बदला न छेंगे १!

«._

इसमें सेएक बलवानपक्षइस दलील को जोरों के साथ

पेश कर रहा था। ख मैं भीइस दक्ीज्ञ को समझ सकता था, भौर आवश्यक भद्दत्त भी उसे जहर देता था। ध्यापि

मुझेबहविल्टुज्ञठोकनहींमालूमहुई।अतःमैंनेइस दृह्ील

रहस्थ का उत्तर अपने दिल को और अपने लोगों को इसे

तर दिया।--