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ओग्रस्लढ़ाई
५दक्तिण अफ्रीका मेंहमारी हरती केवल ब्रिटिश प्रजा की हैसियत से ही है। हरएक दरख्वास्त में जोहक माँगे हैं.वे भी इसी हैसियत से माँगे गये हैं।मिटिश प्रजा कहलाने में अपना गौरव समझा है,कत्न सेकम तो राश्याधिकारियों को यही दिखाया हैकि हम यह मानते हैं। राज्याधिकारियों ने भी हमारे स्त्वो की रक्षा इसलिए की हैकि दम ब्रिटिश राज्य की प्रजा जोभीकुछकर सकेहैं,सब उसी देसियत के हैं। हमयहाँ
बत्त पर | दक्षिण अफ्रीका मेंअंग्रेज हमें दुःख देते हैं, इसलिए
हमे--हमारे सनुध्यत्व को भी--यह शोभा नहीं देता कि ऐसे
प्रसग पर जब कि उनके और हमारे घर-चार लुट जाने का खत्रा
है,हम तमाशवीन की तरह यह सब दूर सेदेखते रहें। यही नहीं,
बल्कि अपने इस काये से हम अपना दुःख और भी बढ़ा छेंगे। निस आरोप को*हम असत्य मानते हैं,और जिसे असत्य सिद्ध कर दिखाने का मौका अनायास मिला है; ऐसी द्वालत में उसे अपने हाथ से स्रो देन। मानों उसे स्वयं ही सच्चा साबित कर
देना है। यदि हम पर अधिक मुसीबतें आवें और अग्रेज हमें दोष दें, तो इसमें आश्वय की बात नहीं। यह तो हमारा ही
दोष कह्दा जायगा | उस द्वाज्ञत में हमारा यह कहना सानो अपने आपको ठगना हैकि अंग्रेज क्ोग जितने दोष हम पर कगाते हैं
वे सब निमूलहै। थेध्यान देने के योग्य भी नही। यद्द सच हैकि अंग्रेजी राज्य में हमारी दाज्ञत गुलामों की सी हो है पर हमारा
अब तक का बतांव ब्रिटिश साम्राज्य में रहते हुए गुज्ञामी मिटाने का प्रथत्त करने की ओर ही रद्ा है। भारत के तमाम नेता भी ऐसा ही कर रहे हैं।हम भी वही कर रहे हैं।और यदि ब्रिटिश साम्राज्य के अन्द्र रद्द कर हम स्वाधीनता और अपने
उत्कष की साधना करना चाहते हैं, तोउसके लिए यह सुबर्य