पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१११

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'दलिण श्रफ्रीकाका सत्याग्रह

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'संयोग है। इस समय लड़ाई में तन-मनन्‍्धन से हम सहायता

'करें। यह तो हम अधिकांश मेंकयूज्त करसकते हैं क्रि स्णय बोधरों के पत्त मेंहै। पर राज्य-सन्त्र फे अन्दर हरएक प्रजानन

अपने व्यक्तिगत विचारों पर पुरी तरह अमल नदी कर सकता। थह नहीं कि राज्याधिकारी जितने कार्य करते हैं वे सब्र योग्य ही दोते हैं।तथापि जहाँ तक प्रजाजन किमी शासन-तन्त्र को

कबूल करते हैं,वहाँ तक उनका यही स्पष्ट धर्म है.कि ये अपने आपको सामान्यतः उसके अनुकूल ही बना लें | फिर यदि प्रजा फा फोई हित्सा राज्य फे किसी भी काम को यदि घांमिंक दृष्टि सेअनीतिम्य माने तो उस समय उस

कार्य मेंविध्न ढालनें या सहायता करने के पहले उमका पहला कतेव्य यह होगा कि वह राज्य को उस अनौति से बचाने का

'यूरा प्रयत्न करे और यदि कर्तव्य करते हुए अपनी जान को

भी जोखिम मेंडालना पड़े तो भी पीछे न हटे। पर हमने इसमें से कुछ भी नहीं किया । न हमारे सामने ऐसा कोई सवाल ही

उपस्थित हुआ और न हमसें से किसो ने यह कहा या माना कि

फल्नों सावेजनिक प्रवल और पर्याप्त कारण का विचार करते हुए इम लड़ाई मेंकोई भाग लेना नहीं चाहते | इसलिए प्रजाजन की हैसियत से तो हमारा यही धर्म हैकि इस समय जढाई के

शुर-दोषों का विचार छोड़ देंऔर लडाई बिड़ द्वी गयी हैवो उससे यथाशक्ति सहायता करें | इस प्म्रथ यह कहकर स्वयं अपने साथ भी अन्याय करना है कि यदि बोभरों की

विजय हुई--और यह मानने के लिए इमारे पास कोई कारण नहीं कि वे नहीं जीतेंगे--तो |हमसे सनमाना है था उस हाकत में हमपर कहाई से निकलकर

मेंगिरनेवाल्ी कद्दावत चरिताये होगी।यदतो इसारी कायरता