पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/११६

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बोश्रस्लढ़ाई,

-इमारी टुकड़ी मेंजितने गिरमिट्ये आये थे, उनके लिए उन्की कोठियों से अंग्रेज नायक भेजे गये थे | पर सबका काम तो एक ही था। सबको एक द्वी साथ रहना पड़ता था।,

इसलिए ये गिरमिटिये हमें देखकर ण्ड़े खुश हुए ।और एक पूरे दल की व्यवस्था अनायास हमारे ही द्वाथों आ गयो । इसलिए,

वह सारी टुकड़ी भारतीयों की ही कहलाने लगी। और उसका यश भी उन्हीं को प्राप्त हुआ। सच पूछा जाय तो मिरमिट्यों

के उसमें शामिल होने 'का श्रेय फेचल भारतीयों को ही नहीं प्राप्त होता | वह तो कोठीवालों को दी मिलेगा। हाँ, यह बात:

जरूर सच हैकि दत्न संगठित होने पर उसकी सुव्यचस्था का

यश अवश्य स्वतन्त्र भारतीयों को मिलेगा और तदनुसार

जनरल बूलर ने अपने खरीतों मेंइस बात का उल्लेख भी कियाहै। हमें आहतों की सुश्रपा को शिक्षा देने वाले डाक्टर वृथः भी हमारे ही साथ थे। ये धढ़े अच्छे पादरी सज्जन थे । भार-

तीय इसाइयों मेंकाम करते समय सबसे मित्न-जुल कर रहत्ते थे | ऊपर मैंने जो२७ नास बताये उसमें से बहुत से इनके शिष्य थे । भारतीयों के शुभ्रूषा-दत्ष केहीजैसा एक थूरोपियनों का भी दक्ष वनाया गया था । दोनों को एक दवी स्थान पर काम करना पड़ता था।

हमने अपनी ओर से कोई शर्त नहीं जगायी थी । पर स्वीकृषत्ति-पत्र मेंयद्द लिखा हुआ था कि बंदूक और तोप के मारे

की ह॒द में हमें नजाना होगा । इसका सतक्षब यह हुआ कि

रणत्षेत्र पर जो सिपाही आहत हो उन्तको फौल के साथ में रहने

वाला, स्थायी शुश्रषा-दत्न उठाकर फ्रौज के पीछे ले जाकर रखदिया क़रे। गोरों का और हमारा यह अस्थायी दल इसलिए:

बनाया गया था कि जनरल वूलर लेढी स्मिथ में-घिरे हुए-जुनरल,