दक्तिण श्रक्तीका का सत्पाम|
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ब्ाइट कोछुडाने के लिए बढ़ा प्रयत्त करनेवाले थे। भर उन्हें यह भय था कि वहाँ इतनेछोग आदत हगि कि स्थायी दस से
वह काम नहीं सेमलेगा । लड़ाई ऐसे क्षेत्रमेंचल्त रही भी कि
जहाँ पर युद्ध पेत्र और छाबनो फे बीच जाने-झाने फे लिए पक्के
रास भी नहीं ये। इसलिये श्राहतों फो इका घोड़ागाड़ी बगेरं
मेंसी नहीं लेजाया जा सकता या। छावनी श्रक्सर किसी ने
किसी रेक्वे स्टेशन के नजदीक रक्खी क्ञाती थी श्रौर यह
साधारणतया युद्ध-केत्र सेसात-्आाठ मोल और कभी-कमी वो २५ मीज्ञ तक दूररहृदो यी।
हमेंकाम शो शीघ्र ही मिक्षगयाऔर मो भी हमारे श्रमुमान
से अ्रधिक कठिन । सातन्सात आउ-प्राठ भील ठक पायलों को
उठाकर ले जाना तो कोई बहुत कठिन बाद नहीं थी। पर हमेंवो
पचीस-पचीस भी तक ऐसे सैमिकों और सेनाधिकारियों को
उठाकर ले जाना पढ़ता था तिनके घाव बहुत गहरे और भवड़र
झोतेथे।राजेमेंउन्हेंदवाभीदेनीपढ़तोंथी।सुबह 5 बे से कूप करके शाम के पांच बचे तक छाती में पहुँच जाता
पढ़ता था। यह कोई आसान वात नहीं थी। एक ही दिन में धायत्ञ को पश्चोस्त मी तकउठाकर ले ज्ञाने कापसंग तो एक
ही बार आाया। फिर पहल्े-पद सरकार की हवार पर द्वार होवी
गयी । घाय्षों को संक्या बहुत चढ़ गयी | इसलिए यह बात तो
अधिकारियों कोभू जानीपढ़ीकिहमेंयुद्धनलषेत्र मेंनलेलाने
का वचनदेघुकेथे। पर यहाँ पर.सुझे: यह जरूर कह देना
चाहिए कि कब ऐसा प्रसंग भाया तव हम सबको बुलाकर
कह दियागयाकि आपके साथ जो शर्दें की गयी हैं,उतमें लिखा किआपकोऐसी लगद नहीं जाना पढ़ेगा बहोँ पर तोप और
चंदूकोंफेगोलेगिररहेहों।इसलिए यदिआप अपनेकोऐसे