“दक्तिण अफ्रोका का सत्याग्रह
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“टिक विभाग को इस चार का जल्दी पता न जगा किमैंट्रांसवाज मेंकिस प्रकार मवेश पा सका। और न यद्द वात मुससे पू्ने “
की सहसा किसी को हिम्मत ही पढ़ी मैंमानता हूँकि उन्हेंयह
विश्वास लरूर होगा कि मेंछिपकर तो हरगिथ न आया हूगा।
आखिर इधर-उधर और लोगों से पृद्ठ॒ताह्व ,कर उन्होंने यहपंती
लगा लिया कि मैंकिस तरह परवाना आप्त कर सका। श्रिटोरिया, का ढेप्यूटेशन (शिष्ट-मएडल्ल )भी मि. चेम्बरलैन से मिलने के
लिए तैयार दो गया । उनके सामने पेश करने के लिए एक
भी लिख ली गयी। पर एशियाटिक विभाग ने ऐसा प्रवन्ध कर दिया जिससे मुमे चेंम्वरलेत से किसी ने न मिलने दिया। हिन्द
स्वानियों के भगुआओं ने सोचा कि इस हालत मेंस्वर वे भी चैम्वरलेन से न सलें। मुझे यह विचार पसंद नहीं आया।
उन्हे कहा कि मेरे इस अपमाव की कड़वी घूँटको मुझे और उन्हें
भी पीजाना चाहिए !मैंने थदद भी कद्ा किकौम की अर्जी तो हैही चस, वही मि, चेम्चरलेन को सुना ठीजिए। एक भारतीय
वेरिस्टर जॉजे गॉड्फ़ वहीं हाजिर थे। उन्हें मैंने अर्जी पढ़ने के
लिए तैयार किया। डेप्यूटेशन गया । भेरे विषय में भी बात
निकली । मि० चैस्व॒रलेन ने कहा कि "म्ि० गांधी से तो ँ
डर्वन में एक बार मिलन चुका था। इसक्षिए मैंने यही उचित
समझा कि यहाँ की स्थिति यहीं के लोगों के मुँह से सुन और इसीलिए मैंने उन्हें मित्ञन से इन्कार कर व्या” । मेरी दृष्टि से इसने आग मेंधी का काम किया | मि० चेम्बरतेन वही वोले जो एशियाटिक विभाग नेउन्हें पटा रदखा था। अंग्रेज जिस
झुंग से भारत में काम लेते हैंएशियाटिक- विभाग ने ट्रान्सवाल मेंइसी ढग को अद्तियार किया | गुजराती भाई यह हो अवश्य ही जानते द्वोगे कि 'चम्पारन में रहनेवाले अंग्रेज बम्वई के