पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१२८

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शै२३

',. * शुद्ध फे बाद निवासियों को परदेशी सममते हैं । इसी प्रकार एशियाटिक दिभाग ने मि० चैम्बरलेन को यह पाठ पढाया कि में उबन का

निवासी--ट्रान्सवाल की बीती फेसे जान मकता हूँ? उस क्या

पता कि मेंट्रान्सवाल मेंरह चुका हूँ। पर 'अगर मेंवहाँ न भी

रहा होता तो भी ट्रान्सवाल की परिस्थिति से मेंपूरी तरह परिचित्त

था। पर सवात्ञ तो फेबल यही था कि ट्रान्सवाज्ञ की परि-

स्थिति सेसबसे अधिक परिचित कोन था | इस वात का उत्तर भारदीयों ने मुके ठेठ देश से चुल्ञाफर दिया था |किन्तु

शासकों के लिए न्याय की दृष्टि कोई काम नहीं देती। मि०

चैम्वरलेन इस समय स्थानीय ब्रिटिश सन्त्रियों की मुद्दीमेंथे, और गोरों को सन्तुष्ट करने केलिए इतने आतुर थे कि इसमें उनके हाथ न्याग्र मिलने की आशा लेश भर भी नहीं थी-अथवा बहुत थोड़ी थी, पर फिर भी हमने उनके पाप्त डेप्यूटेशन इसलिए भेजा कि कही भूलकर भी या स्वाभिमान के कारण कहीं ऐसी कोई गफल्त न हो जिससे न्याय प्राप्त करते के लिए 'एक भी उचित उपाय का अवलंबन करना रह जाथ ।

पर मेरे लिए तो इस वार १८४६४ की अपेकत्ता भी अधिक

विषम प्रसंग उपस्थित दो गया। एक तरफ से विचार करते हुए भुमे मालूम हुआ कि मि० चेम्बरलेन जहाज पर चढ़े नहीं कि

मेंभारत वापिस लौटा नहीं | दूसरी दृष्टि सेविचार करते हुए मैंने अच्छी तरह से यह देख लिया कि यह्‌ जानते हुए भी कि कौम भयझ्ुर स्थित मे है, मेंभारत मेंसेवा करने के अभिमात्त

जब

से अगर वापिस त्ञौट जाऊँगा तो जिस सेवा धर्म की माँकी मैंने देखी थी उसे मेंअवश्य दूषित कर दूँगा। अंत इसी निर्णय पर

पहुँचा लबतक आकाश मेंमढराते हुए विपत्ति के बादल छिन्नप्रभिन्न नहीं हो जाते या हसारे हजार अ्रयत्न करने पर ,भी वे और