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दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह और श्री इन्दुलाल याज्ञिक लिखते गये। शेष अव फिर लिखना शुरू करता हूँ। जेल में मेरे पास आधार के लिए पुस्तके नहीं थीं । यहाँ भी मै उन्हे मॅगाना नहीं चाहता । सविस्तर इतिहास लिखने की न तो मुझे फुरसत है, न उत्साह, न इच्छा । यह केवल इसी उद्देश से लिख रहा हूँ कि वर्तमान युद्ध में वह सहायक हो और यदि किसी फुरमदयाले साहित्त्व-विलासी के हाथों किसी दिन सविस्तर इतिहास लिखा बायें तो उनके कार्य में मेरा यह प्रयत्न पचवार-रूप हो सके । यद्यपि यह विना आधार के लिखा गया है तथापि इससे किसी को यह न सममाना चाहिए कि इसकी कोई यात ठीक नहीं है अथवा किसी जगह अतिशयोक्ति हुई है। मुहू, बुधबार फाल्गुन वदी १३, सवत् १६८० २ अप्रैल, १२४ मोहनदास करमचन्द गांधी