पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१४०

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युद्ध के बाद

' जे इस दलील को पेश किया हैवे उसमें विश्वास नहों करते उनमें

से बहुत-से लोग सचमुच दलील में विश्वास करते हैंओर वे उसे ,

सारयुक्त और तात्तविक भी सानते हैं। संभव हैकि यदि हम भी शैसी परिस्थिति मेंहोंतो शायद ऐमी हो दलोलें पेश करें। शायद्‌

इन्हीं कारणों से “बुद्धि: कमोनुसारिणो” वालो कट्दावत त्कलो होगी। यह अनुभव किसे नहीं कि जेप्ती हमारी अतबूत्ति बतो

हो वैसी द्वोदलोले हमें सूकतो रहतो हैं। और अगर वेदूसरे को

समम में न आव, उसे उनसे संतोष न दोतो हमें भो असतोष

अधीरता और आखिर क्रोध आ जाता है।

मैंने जान वूफ़कर इतनी गहराई से विचार किया है। मैं

चाहता हूँकि पाठक भिन्न-मिन्न दृष्टियों कोसमझ लेंओर आज

तक जो ऐसा न करते आये हों थे उन्हें आदर की दृष्टि से देखने और समझने को आदतें ढालें | सत्याग्रह का रहस्य जानने

के ज्िए और विशेषतः उसको आजमाने के लिए ऐसी उद्ारता

और सहन-शक्ति की चहुत आवश्यकता होती है । इसके सित्रा सत्याग्रह असभव है| इस पुष्तक को लिखनेका हेतुमहज पुस्तक लिखना नहीं है। मेरा हेतुयह भी नहीं कि जनता के सामने

दक्तिण अफ्रोका के इतिहास का एक अध्याय रक्खूँ।मेरा हेतु

तो यह कि जिस वस्तु के लिए मैंजिन्दा हूँ,जिन्दा रहना चाहता ओर जिसके लिये यह मानता हूँकि मेंमरने के लिए भी तैयार हूँ, वह केसे उत्पन्न हुई,उसका सामुदायिक प्रयोग किस तरहहा हा

किया गया यह सब जनता जाते, सममे और जहाँ तक पसंद करे अपनो शक्ति के अनुसार उस पर अमल करे। अब हम फिर कथा-अरसंग की तरफ मुऊें। हम यह देख चुके

हैंकि म्रिटिश सत्ताधिकारियों नेयह निश्चय कर लिया था कि

द्वान्सवाल मेंनवीन भारतीयों को न आने दिया जाय, और वहाँ