पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१४१

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दरिण भग्ीका फा उत्पाद

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के पुराने भारतीयों की रिथति ऐसी दीन हीन करदी जाय हि यो

तो वेघबड़ाकर, लाचारोफर, ट्रान्मपाक्त छोड़कर भांग जीप

और अगर न भी जायें तोलगमग मजदूर जैसे बनकरहीरह

रुके। दिए 5प्रोवा के पितने ही बड़े माने जाने वासेराज" नेतिफ पुरुषों नेवईबार बहा है किभारतीय इस देश में केवत कटियार और पानी भरने वाले बनकर दी जीवन व्यतीत अर

सकते हैं।ऊपर जिस एशियाटिक भहकम फा भिक्र भाया है उसमें दूसरे अधिवारियों के साथ-साथ भारत में रहे हुए वया विभक्तउत्तरदायित्त्व (हायर्की )केआविप्कर्ता तथा अचारक की

हैसियत से नामबरी घमानेचात मि० लायनल कर्टिस भी थे। नेएक अच्छे खानदानी नौमवान हैंया फम-मेनक्म सन्‌ १६०४६

मेंतो जरुर ही नौजवाम थे। लाढे मित्नर के विश्वास-पांत्र ये। सब काम शाल्रोय पद्धति के अनुसार ही करते पा दावा रखते ये। पर उससे भी वढी-बढ़ी गलतियाँ हो सकती थीं। एक समय

अपनी एक ऐसीही भूलसे आपने जोह्टान्सवर्ग की स्युनित्तिपैलिदी

को १४,०५० पौर्ढ के घाटे में डाल दिया था | उन्होंने यह

आविष्कार किया कि यदि नवीन भारतीयों को ट्रान्सवाल मेंआने से रोकना है तो हरएक पुरान भारतीय को दे करने की कोई ऐसी तर्कीव निकाज्षी जाय जिससे एक के बदले दूसरा प्रवेश न पा सके ओर अगर आ भी जाये तो फौरन, पकढा जायें। अग्रेज़ी सत्ता की स्थापना के बाद जो परवाने

निकाले गये थे उनमें भारतीयों के दस्तखढ या झओँगूठे की निशानी थी बाती थी। बाद मेंकिसी नेसूचित किया ठीक तो यह होगा कि हरएक भारतीय की तस्वीर ही खींच की जाये। श्सहिए दरतखूत, अंगूठे को निशानी और तस्वीरें भी लिखना'

शुरू हो गयीं'। इसके लिए किसी कानून की आवश्यकता